SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८ छेदसुत्ताणि ४ एकाकीविहार समाचारी-किस समय किस अवस्था में अकेले विहार करना चाहिए, इस बात का ज्ञान कराना। यह आचार विनय है। सूत्र १७ प्र०-से कि तं सुय-विणए ? उ०-सुय-विणए चउविहे पण्णत्ते । तं जहा१ सुत्तं वाएइ, २ अत्यं वाएइ, ३ हियं वाएइ, ४ निस्सेसं वाएइ। से तं सुय-विणए । (२) प्रश्न-भगवन् ! श्रुतविनय क्या है ? उत्तर-श्रुतविनय चार प्रकार का कहा गया है । जैसे१ सूत्रवाचना-मूल सूत्रों का पढ़ाना । २ अर्थवाचना-सूत्रों के अर्थ का पढ़ाना । ३ हितवाचना-शिष्य के हित का उपदेश देना। ४ निःशेषवाचना-प्रमाण, नय, निक्षेप, संहिता, पदच्छेद, पदार्थ, पदविग्रह, चालना (शंका) प्रसिद्धि (समाधान) आदि के द्वारा सूत्रार्थ का यथाविधि समग्न अध्यापन करना-कराना। यह श्रुतविनय है। सूत्र १८ प्र०--से कि तं विक्खेवणा-विणए ? उ०-विक्खेवणा-विणए चउन्विहे पण्णत्ते । तं जहा१ अदिट्ठ-धम्म दिट्ठ-पुन्वगत्ताए विणयइत्ता भवइ, २ दिट्टपुत्वगं साहम्मियत्ताए विणयइत्ता भवइ, ३ चुय-धम्माओ धम्मे ठावइत्ता भवइ, ४ तस्सेव धम्मस्स हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेसाए, अणुगामियत्ताए अन्मुत्ता भवइ । से तं विक्खेवणा-विणए । (३)
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy