SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छेवसुत्ताणि २ विषय-वाचक-विचारपूर्वक अध्यापन करनेवाला होना। ३ परिनिर्वाप्य-वाचक योग्यतानुसार उपयुक्त पढ़ाने वाला होना। ४ अर्थनिर्यापक-अर्थ-संगति-पूर्वक नय-प्रमाण से अध्यापन कराने वाला होना। यह चार प्रकार की वाचना-सम्पदा है। सूत्र ८ प्र०-से कि त मइ-संपया ? उ०-मइ-संपया चउन्विहा पण्णत्ता, तं जहा१ उग्गह-मइ-संपया, २ ईहा-मइ-संपया ३ अवाय-मइ-संपया ४ धारणा-मइ-संपया। प्रश्न-भगवन ! मति-सम्पदा क्या है ? उत्तर-मतिसम्पदा चार प्रकार की कही गई है । जैसे१ अवग्रह-मतिसम्पदा-सामान्य रूप से अर्थ को जानना। २ ईहा-मतिसम्पदा-सामान्य रूप से जाने हुए अर्थ को विशेष रूप से जानने की इच्छा होना। ३ अवाय-मतिसम्पदा-ईहित वस्तु का विशेष रूप से निश्चय करना। ४ धारणा-मतिसम्पदा-जात वस्तु का कालान्तर में स्मरण रखना। सूत्र ६ प्र०से कि तं उग्गह-मइ-संपया ? उ०-उग्गह-मइ-संपया छविहा पण्णता, तं जहा१ खिप्पं उगिण्हंइ, २ बहु उगिण्हेइ, ३ बहुविहं उगिण्हेइ, ४ धुवं उगिण्हेइ, ५ अणिस्सियं उगिण्हेइ, ६ असंदिद्ध उगिण्हेइ। से तं उग्गह-नइ-संपया। प्रश्न-भगवन् ! अवग्रह-मतिसम्पदा क्या है ? उत्तर-अवग्रह-मतिसम्पदा छह प्रकार की कही गई । जैसे१ क्षिप्र-अवग्रहणता-प्रश्न आदि को शीघ्र ग्रहण करना। २ वहु-अवग्रहणता-बहुत अर्थों का ग्रहण करना ।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy