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________________ छेवसुत्ताणि १८ शैक्ष, अशन, पान, खादिम और स्वादिम माहार को लाकर रालिक साधु के साथ आहार करता हुआ यदि वहां वह शैक्ष प्रचुर मात्रा में विविध प्रकार के शाक, श्रेष्ठ ताजे, रसदार, मनोज्ञ, मनोभिलषित (खीर, रबड़ी, हलुआ आदि) स्निग्ध और नमकीन पापड़, आदि रूक्ष आहार करे तो उसे आशातना दोष लगता है। । १६ रालिक के बुलाने पर यदि शैक्ष रात्निक की बात को नहीं सुनता है (अनसुनी कर चुप रह जाता है) तो उसे आशातना दोप लगता है। २० रालिक के बुलाने पर यदि शैक्ष अपने स्थान पर ही बैठा हा उनकी बात को सुने और सन्मुख उपस्थित न हो तो आशातना दोष लगता है। . २१ रालिक के बुलाने पर यदि शैक्ष 'क्या कहते हो' ऐसा कहता है तो उसे आशातना दोष लगता है। २२ शैक्ष, रालिक को 'तू' या 'तुम' कहे तो उसे आशातना दोष लगता है। '२३ शैक्ष, रात्निक के सन्मुख अनर्गल प्रलाप करे तो उसे आशातना दोष लगता है। २४ शैक्ष, रात्निक को उसी के द्वारा कहे गये वचनों से प्रतिभाषणं करे, (तिरस्कार पूर्ण उत्तर दे) तो उसे आशातना दोष लगता है। - २५ शैक्ष, रात्निक के कथा कहते समय कहे कि 'यह ऐसा कहिये' तो उसे आशातना दोष लगता है। २६ शैक्ष, रालिक के कथा कहते हुए 'आप भूलते हैं, आपको स्मरण नहीं . है', कहता है तो उसे आशातना दोष लगता है। २७ शैक्ष, रालिक के कथा कहते हुए यदि सु-मनस न रहे (दुर्भाव प्रकट कर) तो उसे आशातना दोष लगता है । २८ शैक्ष, रालिक के कथा कहते हुए यदि (किसी बहाने से) परिपद् (सभा) को विसर्जन करने का आग्रह करे तो उसे आशातना दोप लगता है। २६ शैक्ष, रालिक के कथा कहते हुए यदि कथा में बाधा उपस्थित करे तो उसे आशातना दोप लगता है। ३० शैक्ष, रात्निक के कथा कहते हुए उस परिषद् के अनुत्थित (नहीं उठने तक) अभिन्न, अच्छिन्न (छिन्न-भिन्न नही होने तक) और अव्याकृत (नहीं बिखरने तक) विद्यमान रहते हुए यदि उसी कथा को दूसरी बार और तीसरी बार भी कहता है तो उसे आशातना दोष लगता है ।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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