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________________ ६. छेवसुत्ताणि १० पृष्ठमांसिक ( पीठ पीछे निन्दा करने वाला) होना दशवां असमाधिस्थान है । ११ वार वार अवधारणी (निश्चयात्मक) भाषा बोलना ग्यारहवां असमाधिस्थान है । १२ अनुत्पन्न (नवीन) अधिकरणों ( कलहों) को उत्पन्न करना बारहवां असमाधिस्थान है | १३ क्षमापन द्वारा उपशान्त पुराने अधिकरणों का फिर से उदीरण करना (उभारना) तेरहवां असमाधिस्थान है । १४ अकाल में स्वाध्याय करना चौदहवां असमाधिस्थान है । १५ सचित्तरज से युक्त हस्त-पादवाले व्यक्ति से भिक्षादि ग्रहण करना पन्द्रहवां असमाधिस्थान है । १६ शब्द करना ( अनावश्यक बोलना ) सोलहवां असमाधिस्थान है | १७ झंझा (संघ में भेद उत्पन्न करनेवाला) वचन बोलना सत्रहवां असमाधिस्थान है । १८ कलह करना अठारहवां असमाधिस्थान है । १६ सूर्यप्रमाण- भोजी (सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ न कुछ खाते रहना) उन्नीसवां असमाधिस्थान है । २० एषणासमिति से असमित (अनेपणीय भक्त- पानादि की) एपणा करना वीसवां असमाधिस्थान है | सूत्र ४ एते खलु ते रेहि मंगवंतेहि वीसं असमाहि-द्वाणा पण्णत्ता । त्ति बेमि । पढमा असमाहिद्वाणा दसा समत्ता स्थविर भगवन्तों ने ये ही बीस असमाधिस्थान कहे हैं । : : प्रथम दशा का सारांश - ऐसा मैं कहता हूं । D चित्त को स्वच्छतापूर्वक मोक्षमार्ग में अर्थात् जिस कार्य के करने से चित्त को लगकर उसकी प्राप्ति कर सके, वह समाधि संलग्न होने को समाधि कहते हैं । शान्ति प्राप्त हो और मोक्षमार्ग में कहलाती है । इससे विपरीतप्रवृत्ति को असमाधि कहते हैं । जिन कारणों से असमाधि उत्पन्न होती हैं वे असमाधि
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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