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________________ १६६ से णं ताओ देवलोगाओ आउक्साएणं भवक्खएणं द्वितिक्खएणं अनंतरं चयं चइता - आयारवसा अण्णतरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति । जाव- ते णं तं दारियं जाव-भारियत्ताए दलयंति । सा णं तस्स भारिया भवति एगा एगजाया । जाव - तहेव सव्वं भाणियत्वं । तोसे णं अतिजायमाणीए वा निज्जायमाणीए वा जाव -- "कि ते आसगस्स सदति ?" हे आयुष्मान् श्रमणो ! वह निर्ग्रन्थ निदान करके उस निदान शल्य की आलोचना या प्रतिक्रमण किये विना जीवन के अन्तिम क्षणों में देह त्याग कर किसी एक देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होता है। वह देव महान् ऋद्धि वाला ... यावत् .... उत्कृष्ट स्थिति वाला होता है । आयु भव और स्थिति का क्षय होने पर वह उस देवलोक से च्यव (दिव्य देह छोड़ कर ( पूर्व कथित) किसी एक कुल में वालिका रूप उत्पन्न होता है... यावत् .... उस बालिका को .... यावत्.... भार्या रूप में देते हैं । वह अपने पति को केवल एकमात्र प्राणप्रिया होती है... यावत् ... पहले के समान सारा वर्णन ( शिष्यों द्वारा) कहलाना चाहिये । उसे अपने प्रासाद में आते-जाते देखते हैं ।... यावत्... आपके मुख को कोन-से पदार्थ स्वादिष्ट लगते हैं ? सूत्र ३२ तोसे णं तहप्पगाराए इत्थियाए तहारूवे समणे वा माहणे वा जावधम्मं भइक्वेज्जा ? हंता ! आइक्लेज्जा । सा णं पडिसुणेज्जा ? णो इणट्ठे समट्ठे । अभवि या णं सा तस्स धम्मस्स सवणयाए । सा च भवति महिच्छा जाव - दाहिणगामिए णेरइए आगमेस्साए दुल्लभबोहिया विभवति । तं खलु समणाउसो ! तस्स णियाणस्स इमेयाख्वे पावए फल- विवागे भवति । जं नो संचाएति केवलि पण्णत्तं धम्मं पडिसुणित्तए ।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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