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________________ १५० छेदसुत्ताणि महावीर के यहाँ पधारने का) प्रिय संवाद कहें। (और कहें कि) आपके लिए यह संवाद प्रिय हो । दो-तीन बार इस प्रकार कहा ।....यावत्...जिस दिशा से वे आये थे उसी दिशा में चले गए। सूत्र ८ ते णं काले णं, ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव-गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जाव-अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। उस काल और उस समय में पंच याम धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकर भगवान महावीर-यावत्...आत्म-साधना करते हुए-गुणशील उद्यान में) पधारे। सूत्र | तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-एवं जाव-परिसा निग्गया, जाव-पज्जुवासइ । उस समय राजगृह नगर के त्रिकोण =तिराहे · चौराहे और चौक में होकर....यावत्...परिषद् नगर के बाहर निकली...यावत् पर्युपासना करने लगी। सूत्र १० तए णं महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणे व उवागच्छंति, उवागच्छिता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदति नमसंति, वंदित्ता, नमंसित्ता नाम-गोयं पुच्छंति, नाम-गोयं पुच्छित्ता नाम-गोयं पधारेंति, पधारित्ता एगो मिलंति, एगओ मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, एगंतमवक्कमित्ता एवं वयासी"जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया भंभसारे दसणं कंखति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया सणं पीहेति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं पत्थेति, जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया दंसणं अभिलसति,
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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