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________________ आयारदसा १२१ किन्तु आचार्य यावत् गणावच्छेदक-इनमें से जिसको अगुआ मानकर वह विचर रहा हो उन्हें पूछकर ही तपःकर्म स्वीकार करना कल्पता है। वह भी अमुक प्रकार का और इतनी बार। । यदि वे (आचार्यादि) आज्ञा दें तो तपःकर्म स्वीकार करना कल्पता है । यदि वे (आचार्यादि) आज्ञा न दें तो तपःकर्म स्वीकार करना नहीं कल्पता है। प्रश्न-हे भगवन् ! आपने ऐसा क्यों कहा? उत्तर-आचार्यादि आने वाली विघ्न-बाधाओं को जानते हैं । सूत्र ६५ वासावासं पज्जोसविए भिक्खू इच्छिज्जा अपच्छिम-मारणंतिय-संलेहणाझूसणा झूसिए भत्त-पाण-पडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकखमाण्णे विहरित्तए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा, असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा आहारित्तए, उच्चारं वा, पासवणं वा परिठ्ठावित्तए, सज्झायं वा करित्तएधम्मजागरियं वा जागरित्तए । नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता १ आयरियं वा, २ उवज्झायं वा, ३ थेरं वा, ४ पवत्तयं वा, ५ गणि वा, ६ गणहरं वा, ७ गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ काउं विहरइ। कप्पइ से आपुच्छित्ता १ आयरियं वा, २ उवज्झायं वा, ३ थेरं वा, ४ पवत्तयं वा, ५ गणि वा, ६ गणहरं वा, ७ गणावच्छेययं वा, जं वा पुरओ काउं विहरइ-इच्छामि गं भंते ! तुन्भेहि अब्भणण्णाए समाणे अपच्छिम मारणंतिय-संलेहणा-झूसणा झुसिए भत्त-पाण-पडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरित्तए वा, निक्खभित्तए वा, पविसित्तए वा। असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा आहारित्तएउच्चारं वा, पासवणं वा परिट्ठावित्तएसज्झायं वा करित्तएधम्म जागरियं वा जागरित्तए ? तं एवइयं वा, एवइखुत्तो वा ? ते य से वियरिज्जा,.
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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