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________________ १०५ छेदसुत्ताणि टीकाकार ने इसमें आत्म-विराधना और संयम-विराधना की सम्भावना दिखाते हुए कहा है-साधु या साध्वी को एकाकी (अकेला) देखकर कोई भी किसी भी प्रकार का उपद्रव कर सकता है तथा साथ वाले अन्य साघु या साध्वी उसके नहीं पहुंचने पर चिन्ता करेंगे, अतः सूर्यास्त होने तक साधु या साध्वी को उपाश्रय में पहुंच ही जाना चाहिए। सूत्र ४५ वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स वा, निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठस्स निगिज्झय निगिज्झिय वुष्टिकाए निवइज्जा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अहे वियडगिहंसि वा, अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए। तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स, एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिट्टित्तए । (१) तत्य नो कप्पइ एगस्स निग्गयस्स, दुण्हं निग्गयोणं एगयओ चिट्ठित्तए । (२) तत्य नो कप्पइ दुण्हं निग्गंयाणं, एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिट्टित्तए । (३) तत्य नो कप्पइ दुण्हं निग्गंयाणं, दुण्हं निग्गंथोणं य एगयओ चिट्ठित्तए। (४) अत्यि य इत्य केइ पंचमे खुड्डए वा खुड्डियाइ वा अन्नेसि वा संलोए सपडिदुवारे एवं णं कप्पइ एगयो चिट्ठित्तए १८/४५ वर्षावास रहे हुए निर्गन्थ-निर्गन्थियां गृहस्थों के घरों में आहार के लिए गए हुए हों और लौटकर उपाश्रय की ओर आ रहे हों उस समय रुक-रुक कर वर्या आने लगे तो उन्हें आराम गृह, उपाश्रय, विकटगृह या वृक्ष के नीचे आकर ठहरना कल्पता है । (१) किन्तु वहाँ अकेले निर्ग्रन्थ को अकेली निर्गन्थी के साथ ठहरना नहीं कल्पता है। (२) अकेले निर्ग्रन्थ को दो निर्गन्थियों के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । (३) दो निर्ग्रन्थों को अकेली निर्गन्थी के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । (४) दो निर्ग्रन्थों को दो निर्गत्थियों के साथ ठहरना नहीं कल्पता है । यदि वहाँ पर पांचवा व्यक्ति स्त्री या पुरुष हो अथवा वह स्थान आने-जाने वालों को स्पष्ट दिखाई देता हो और अनेक द्वार वाला हो तो जब तक वर्पा वरसती रहे, तब तक उन साधु-साध्वियों को एक स्थान में एक साथ ठहरना कल्पता है।
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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