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________________ । १२ ) आचार्य पद ग्रहण करने के पूर्व इनका अध्ययन करना आवश्यक है। इस प्रकार यह दशाश्रुत स्कंध सूत्र अथवा आचार-दशा श्रमण-जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। आगमों का व्याख्या साहित्य __ आगमों पर आज तक जितना भी व्याख्या-साहित्य लिखा गया है, उसे षड्-विभागों में विभक्त किया जा सकता है-नियुक्ति, भाष्य, चूणि, संस्कृत टीका, लोकभाषा टब्बा तथा आधुनिक सम्पादन एवं अनुवाद । नियुक्ति तथा भाष्य, ये दोनों व्याख्याएँ प्राकृत में लिखी जाती रही हैं । दोनों में अन्तर यह है, किं नियुक्ति व्याख्या पद्यमयी होती है, तथा भाष्य भी पद्यमय होता है, परन्तु विभिन्न पदों की व्याख्या नियुक्ति है तथा विस्तृत विचारात्मक व्याख्या भाष्य है। जिसमें अनेक विषयों का यथाप्रसंग समावेश कर दिया जाता है। अतः नियुक्ति और भाष्य जैन-आगमों की पचवद्ध व्याख्याएँ हैं। इनकी रचना प्राकृत-भाषा में ही होती रही है। नियुक्ति व्याख्या में मूल ग्रन्थ के प्रत्येक पद या वाक्य का व्याख्यान न होकर विशेष रूप से पारिभाषिक शब्दों की ही व्याख्या की जाती है। नियुक्ति की व्याख्यान शैली निक्षेप पद्धति के रूप में प्रसिद्ध है । यह अत्यन्त प्राचीन व्याख्या पद्धति रही है। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु छेद-सूत्रकार-चतुर्दश-पूर्वधर आचार्य भद्रवाहु से भिन्न हैं । नियुक्तिकार भद्रवाहु ने अपनी दशाश्रुत स्कंध नियुक्ति एवं पंचकल्प नियुक्ति के प्रारम्भ में छेद-सूत्रकार भद्रवाहु को नमस्कार किया है । नियुक्ति का मुख्य प्रयोजन पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या रहा है। इन शब्दों में छिपे हुए अर्थ बाहुल्य को अभिव्यक्त करने का सुन्दर श्रेय विशालमति भाष्यकारों को ही दिया जाना चाहिए । कुछ भाष्य नियुक्तियों पर हैं, कुछ केवल मूल सूत्रों पर। इस विशाल प्राकृत-भाष्य साहित्य का जनसाहित्य में ही नहीं, वैदिक और बौद्ध-साहित्य में भी एक विशिष्ट स्थान रहा है। क्योंकि इन भाष्यों में यथाप्रसंग और यथास्थान वैदिक और वौद्ध मान्यताओं का उल्लेख होता रहा है। कभी-कभी खण्डन के रूप में भी उनका वर्णन किया है और कहीं पर अपने पक्ष को स्थिर करने के लिए भी उनका उपयोग किया गया है । भाष्यकार के रूप में दो आचार्य प्रसिद्ध है-जिनभद्रगणि और संघदासगणि। ___ जैन आगमों की तीसरी व्याख्या पद्धति चूणि रही है। चूणि. व्याख्या न अति संक्षिप्त होती है और न अति विस्तृत । चूणि व्याख्या की एक विशेषता यह भी रही है कि वह प्राकृत तथा संस्कृत: दोनों भाषाओं का सम्मिश्रण
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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