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________________ लाचारदता १०३ जसड पारा से एक बार में जितना भक्त (दाल-चावल) या पानक दिया जाता है उतना एक दत्ती कहा जाता है। पदि कोई गृहस्य असप्ड धारा से एक बार में नमक को चुटकी जितना बल तपान नी दे तो उसे एक दत्ति ही मानना चाहिए । स्वीकृत संख्या के अनुसार सनी दत्तियां यदि मल्लल्प भत्त-पान वाली हों तो संस्था-दत्तिक निशु को उस दिन उस अल्प भक्त-पान से ही निर्वाह करना चाहिए. किन्तु दूसरी बार निक्षा के लिये नहीं जाना चाहिए। सूत्र में यषि मन्त-पान को पांच दत्तियों से अधिक या न्यून लेने का विधान लयवा निपेष नहीं है तथापि टीकाकार लिखते हैं-"सन पञ्चादिकमुफ्तस तेन यानिग्रहं न्यूनाधिका वा वाच्या" अर्थात् यहाँ पांच की संख्या को उपतमाप मानकर निकम या अविक दत्तियों की संख्या का भी अमिह कर सकता है और तदनुसार वह मत-पान की दत्तियां ग्रहण कर सकता है। इसके साप टीकाकार यह भी लिखते हैं कि गृहत्य यदि नक्त की दो तीन अधिक परिमाप वाली दतियां देदे और मिथु उन्हें अपने लिए पर्याप्त समझे तो शेप दो-तीन दत्तियों की संख्या को पानक की दत्तियों में जोड़कर पानक की अधिक दत्तियां न ले। इसी प्रकार पान की दो-तीन दत्तियां जषिक परिमाण वाली मित जाने पर शेप पानक की दत्तियों को मक्त की दत्तियों में जोड़कर मक्त की अधिक दत्तियां न ले। संखडिगमन निषेध-रूपा एकादशमी समाचारी वासावा पज्जोसदियाशं नो कप्पड निगंयाणं वा, निग्गंयोणं वा जाव ज्वलयाओ सत्तघरंतरं संसडि संनियट्टचारिस्त इत्तए। एगे एक्माहंतु-"नो कप्पइ जाब विस्तयानो परेग सत्तघरंतरं संडि सनिपट्टचारिस्त इत्तए।" एगे पुष एवनाहंतु-"नो कम्पइ नाव उवस्तयाजो परंपरेण संआंड संनियदृचारित इत्तए। ८३६ ग्यारहवी संखड़ी-रूपा समाचारी वर्षादास रहने वाले संतड़ी सनिवृत्तवारी (हद नोज का बाहार न लेने वाले) निन्य-निन्थियों को जावय से लेकर सात पर पर्यन्त मिक्षा के लिए जाना नहीं कल्पता है। कुछ नाचार्यों का कहना है कि संखड़ी निवृत्तवारी
SR No.010768
Book TitleAgam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Aayaro Dasha Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1977
Total Pages203
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_dashashrutaskandh
File Size6 MB
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