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________________ 106 दुस्सह कटु वचनों की अवहेलना करके मुनि (महावीर) (आत्म-ध्यान में) . (ही) पुरुषार्थ करते हुए (रहते थे)। (वे) कथा-नाच-गान में (तथा) लाठी-युद्ध (और) मूठी-युद्ध में (समय नहीं विताते थे)। 107 परस्पर (काम) कथाओं में तथा (कामातुर) इशारों में आसक्त (व्यक्तियों) को ज्ञात-पुत्र (महावीर) (हर्ष)-शोक रहित देखते थे । वे ज्ञात-पुत्र इन मनोहर (बातों) का स्मरण नहीं करते थे। 108 पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, शैवाल, बीज और हरी. वनस्पति तथा प्रसकाय को पूर्णतया जानकर (महावीर विहार करते थे)। 109 ये चेतनवान् है, उन्होंने देखा। इस प्रकार वे महावीर जानकर (और) समझकर (प्राणियों की हिंसा का) परित्याग करके विहार करते थे। 110 मुनि (महावीर) खाने-पीने की मात्रा को समझने वाले (थे), (भोजन के) रसों में लालायित नहीं होते (थे)। (वे) (भोजन-संबंधी) निश्चय नहीं (करते थे)। (अाँख में कुछ गिरने पर) (व) आँख को भी नहीं पोंछकर (रहते थे) अर्थात् नहीं पोंछते थे और (वे) शरीर को भी खुजलाते नहीं (थे)। 111 मार्ग को देखने वाले (महावीर) तिरछे (दाएँ-वाएँ) देखकर नहीं (चलते थे), पीछे की ओर देखकर नहीं (चलते थे), (किसी के द्वारा) संबोधित किए गए होने पर (वे) उत्तर देने वाले नहीं (होते थे)। (इस तरह से) (वे) सावधानी बरतते हुए गमन करते थे। चयनिका ] [ 67
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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