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________________ ( आसक्ति के कारण ) (परिग्रही कहे जाते हैं) । वह (मनुष्यसमूह ) ( जो ) थोड़ी या बहुत, छोटी या वड़ी, सजीव या निर्जीव (वस्तु) को (ममता से ) ( रखता है); इनमें ही ममत्वयुक्त ( कहा जाता है) । इसलिए हो (उन) कई (मनुष्यों) में महाभय उत्पन्न होता है । ( इस वात को ) (व्यक्ति) लोकआचरण को देखकर ही ( समझे ) । इन श्रासक्तियों को नहीं समझने से (व्यक्ति) ( भयभीत रहता है) । 87 मेरे द्वारा (यह ) सुना गया (है) और मेरे द्वारा श्रात्म-संबंधी ( यह ज्ञान प्राप्त किया गया है) कि बंध (शान्ति) और मोक्ष (शान्ति) तेरे ( अपने ) मन में हो (होता है ) / (होती है) । 88 तीर्थङ्करों द्वारा समता में धर्म कहा गया ( है ) । 89 इस ( मानसिक विषमता ) के साथ ही युद्ध कर, तुम्हारे लिए बाहर (व्यक्तियों) से युद्ध करने से क्या लाभ ? (विषमता के साथ) युद्ध करने के योग्य ( होना) निश्चय ही दुर्लभ ( है ) । 90 इस प्रकार (तुम) (सब) जानो ( कि) जो (मानसिक) समता ( है ) अर्थात् द्वन्द्वातीत अवस्था है, वह मौन में ( ही ) ( प्रकट होती है) । श्रत: (तुम) (सव ) ( इस वात को ) समझो | इस प्रकार (तुम) (सव ) जानो ( कि) जो मोन में ( स्थित है), वह (मानसिक) समता में ( स्थित है ) अर्थात् द्वन्द्वातीत अवस्था में स्थित है । अतः (तुम) (सब) ( इस वात को ) समझो । 91 उत्थान का अहंकार होने पर ही मनुष्य तीव्र मोह ( श्रासक्ति) के कारण मूढ़ वन जाता है । 92 (अपने ) मन में (अध्यात्म के प्रति ) ग्रहण किए हुए संदेह के कारण (मनुष्य) समाधि ( अवस्था ) को प्राप्त नहीं कर पाता है । चयनिका ] [ 57
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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