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________________ (अ)=चूंकि अविमणे (अविमण) 1/1 वि तम्हा (अ)=इसलिए रज्जति (रज्ज) व 3/1 अक। 47 गारति [(ण)+(अरति)]=नहीं, विकर्षण को। सहती=सहन करता है। वोरे वीर । णो नहीं । रति आकर्षण को। जम्हा=चूंकि । अविमणे =खिन्न नहीं । तम्हा=इसलिए । ण-नहीं। रज्जति खुश होता है । 48 जे (ज) 1/1 सवि अणण्णदंसी [(अणण्ण) वि-दंसि) 1/1 वि] से (त) 1/1 सवि अणण्णारामे [(अणण्ण)+(आरामे)] [(अणण्ण) वि-(प्राराम) 7/1] 48 जे-जो । अणण्णदंसी=समतामयी के दर्शन करने वाला। सेवह । अणण्णारामे (अणण्ण+आरामे)-अनुपम, प्रसन्नता में ! 49 उड्ढं (अ) ऊंची, अहं(अ) नीची तिरियं (अ)-तिरछी दिसासु (दिसा) 7/2 से (त) 1/1 वि सव्वतो (अ)=सव ओर से सवपरिग्णाचारी [(सव्व) वि-(परिण्णा)-(चारि) 1/1 वि] ण (अ)-नहीं लिप्पति (लिप्पति) व कर्म 3/1 सक अनि छणपदेण [(छण)-(पद) 3/1 वीरे (वीर) 1/1 वि. 49 उड्ढे-ऊंची । अहं नीची । तिरियं-तिरछी । दिसासु = दिशाओं में । से-वह । सव्वतो=सब ओर से । सवपरिण्णाचारी पूर्ण जागरूकता से चलने वाला। नहीं। लिप्पति संलग्न किया जाता है। छणपदेन=हिंसा-स्थान के साथ । वीरे= वीर । 50 से (त) 1/1 सवि मेधावी (मेवावि) 1/1 वि जे (ज) .1/1 सवि अणुग्घातणस्स (अणुग्घातण) 6/1 खेत्तण्णे (खेत्तण्ण) 1/1 वि जे (ज) 1/1 सवि य (अ)=भी बंधपमोक्खमण्णेसी (बंध)+(पमोक्ख)+ (अण्णेसी] [(वंव)-(पमोक्ख)' 2/1] अण्णेसी (अण्णेसि) 1/1 वि 1. कभी कभी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी विभक्ति के स्थान पर पाया जाता है (हम प्राकृत व्याकरण : 3-137) चयनिका ] [ 107
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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