SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उड्ढं-ऊपर(को)। भाग=भाग को । तिरियं तिरछे (को)। गढिए =आसक्त । अणुपरियट्टमाणे-फिरता हुआ । संघि-अवसर को । विदित्ता=जानकर । इह-यहाँ। मच्चिएहि मनुष्य के द्वारा । एस= यह (वह) । वीरे-वीर । पसंसिते=प्रशंसित । जे-जो । बढे ववे हुओं को । पडिमोयए-मुक्त करता है। 45 कासंकसे (कासंकस) 1/1 वि खलु (अ)=सचमुच अयं (इम) 1/1 सवि पुरिसे (पुरिस 1/1 बहुमायो (वहुमायि) 1/1 वि कडेण (अ) के कारण मूढे (मूढ) 1/1 वि पुणो (अ)=फिर तं (अ)-इसलिए करेति (कर) व 3/1 सक लोभं (लोभ) 2/1 वेरं (वेर) 2/1 वड्ढेति (वड्ढ) व 3/1 सक अप्पणो (अप्प) 4/1. 45 कासंकसे आसक्त । खलु सत्रमुच । अयं=यह । पुरिसे-मनुष्य । बहुमायी=अति कपटी। कडेण=के कारण । मूढ=अनानी । पुणो= फिर । तं=इसलिए । करेति=करता है । लोभं लोलुपता को । वेरं= दुश्मनी (को) । वड्ढेति बढ़ाता है । अप्पणो अपने लिए । 46 जे (ज) 1/1 सवि ममाइयमति [(ममाइय) वि-(मति) 2/1] जहाति (जहा) व 3/1 सक से (त) 1/1 सवि ममाइतं (ममाइत) 2/1 विह (अ) ही दिठ्ठपहे [(दिट्ठ) वि-(पह) 1/1] मुणी (मुणि) 1/1 जस्स (ज) 4/1 स त्यि (अ) नहीं है ममाइतं (ममाइत) 1/1 वि 46 जेजो । ममाइयमति = ममतावाली वस्तु वुद्धि को। जहाति छोड़ता है । से वह । ममाइतं ममतावाली वस्तु को । हु=ही । दिट्ठपहे=पथ जाना गया । मुणी ज्ञानी । जस्स=जिसके लिए । पत्थि नहीं है। 47 णारति [(ण)+(अरति)] =नहीं अरति (अरति) 2/1 सहती' (सह) व 3/1 सक वीरे (वीर) 1/1 णो नहीं रति (रति) 2/1 जम्हा 1. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'ति' को 'ती' किया गया है। 106 ] [ आचारांग
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy