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________________ ( श्राउया ) ] [ ( प ) वि - ( प्राउय ) 1 / 2] सुहसाता [ ( सुह' ) वि(सात) 1 / 2] दुक्खपडिकूला [ ( दुक्ख ) - ( पडिकूल ) 1/2 वि] अप्पियवधा [ ( अप्पिय ) वि - (वध) 1 / 2 ] पियजीविणो [ ( पिय) वि - ( जीविरगो 2 ) 1/2 वि अनी ] जीवितुकामा ( जीवितुकाम) 1/2 वि सर्व्वेस (सव्व) 4 / 2 सवि जीवितं (जीवित) 1 / 1पियं ( पिय) 1 / 1 वि 36 इणमेव ( इ + एव) = इस को,. = न आना । ,........ | णावकखंति = ( ग + अवकंसंति) - नहीं चाहते हैं । जे = जो । जरणा = लोग । ध्रुवचारिणो = परमशान्ति के इच्छुक | जाती- मरणं = जन्म मरण को । परिण्णाय = जानकर । संकमणे = संयम पर । चर = चल | दर्द = दृढ । गात्थि = नहीं है । कालस्स = मृत्यु के लिए । णागमो = ( ग + आगमो ) सब्वे = = सव | पाणा = प्रारणी | पिआउया प्रिय, आयु । सुहसाता = अनुकूल, सुख । दुक्खपडिकूला = दुःख प्रतिकूल । अप्पियवधा = अप्रिय, वध । पियजीविणो = प्रिय, जिन्दा रहने वाली | जिवितुकामा = जीवन के इच्छुक । सव्र्व्वेसि = सब के लिए । जीवितं = जीवन पियं= प्रिय । (पिन + श्राउया = 37 तं (अ) = तो परिगिज्झ (परिगिज्झ ) संकृ अनि दुपयं (दुपय) 2 / 1 चउप्पयं (चउप्पय) 2/1 अभिजु जियाणं (अभिजुंज) संकृ संसिचियाणं ' ( संसिंच) संकृ तिविषेण (तिविध ) 3 / 1 विजा ( जा ) 1 / 1 सवि वि ( अ ) = भी से (त) 6 / 1 सवि तत्थ ( अ ) = उस अवसर पर मत्ता ( मत्ता) 1 / 1 भवति ( भव) व 3 / 1 अक अप्पा (अप्प विवा ( अ ) | = या बहुगा ( बहुग - बहुगा ) 1 / 1 वि से (त) अप्पा ) 1/1 1 / 1 सवि 1. 'सुह' का अर्थ 'अनुकूल' है । 2. सामान्यतः समास के अन्त में प्रयुक्त । 3. पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकररण, पृष्ठ 838 चयनिका ] [ 99
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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