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________________ माणवारणं (गाणव) 4/2 रोत-पाय | (मेल)-(धन) मृत मन्द 211) ममायमाणाणं (गगा'--गमाय) व 4/2 ण (अ) = नहीं एल्य (एत) 7/1 मवि तयो (तय) 111 या (घ): और दमो (दम) 1/। णियमो (पिगम) 1/1 दिसति (दिरमनि) य कर्म 3/1 सक अनि 35 जीवियं - जीवन । पुढी- अलग-अलग । पियं = प्रिय । हमेगेनि (इह !. एगेसि) = यहां, कुछ को लिए) । माणवाणं == व्यक्तियों के लिए। मेत्त-वत्यु - भूमि व धन-दौलत । ममायमाणाणं - इन्छा करते हुए के लिए)। ण = नहीं । एत्य = उन में । तयो- तप । या और । दमी-प्रान्म नियन्त्रण । णियमो-मीमा यन्यन । दिस्मति:- देखा जाता है। 36 इणमेव [ (इणं)--- (एव) णं (इम) 2/1 मवि. एव (प्र) = निःसन्देह रणावफसंति [(ण)-- (अवमंति)] रा (प्र)- नहीं,अयराति (अवकंस) व 3/2 सक धुवचारिणो (धुवचारि) 1/2 वि जे (ज) 1/2 स जणा (जरण) 1/2 जाती-मरणं [(जाती')-(मरण) :1] परिणाय (परिणा) संकृ चर' (चर) विधि 2/1 सक संफगरणे' (संकमण) 7/1 दर्द (दढ) 7/1 वि णत्यि (अ) = नहीं है कालस्स (काल) 4/| गागमो [(ग)---(भागमा)। ण (अ)= नहीं. आगमो (आगम) 1/1 सव्वे (सव्व) 1/2 सवि पाणा (पाण) 1/2 पिआउया [(पिन): - - - -- 1. 'अ' या 'य' विकल्प से जोड़ा जाता है। 2. कभी-कभी यह प्रत्येक शब्द या उक्ति के साथ प्रयुक्त होता है । 3. समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व प्रायः हो जाते हैं । (हेम प्राकृत व्याकरण, 1-4) 4. कभी-कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135) 98 ] [ आचागंग
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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