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________________ 3/1 अक यसो (वय) 1/1 अच्चेति (अच्चेति) व 3/1 अक अनि जोन्यरणं (जोल्वण) 1/17 (अ) भी।। 28. इच्चेवं = इस प्रकार । समुद्विते = सम्यक् प्रयत्नशील । अहोविहाराए= पापचर्यकारी संयम के लिए। अंतर =अवसर को। च=ही। इमं% इस (को) । सपेहाए = देखकर । धीरे धीर। मुहत्तमवि (मुहुत्तं+अवि) = क्षण भर के लिए, भी। णो=न । पमादए प्रमाद करे। वो= पायु । अच्चेति-वीतती है । जोव्वरणं = योवन । च = भी। 29. जोयिते (जीवित) 7/1 इह (इम) 7/1 सवि जे (ज) 1/2 सवि पमत्ता (पमत्त) 1/2 वि से' (त) 1/1 सवि हंता (हंतु) 1/1 वि छेत्ता (येत्त) 1/1 वि भेत्ता (भत्तु) 1/1 वि लुपित्ता (लुपित्त) 1/1 वि विलुपित्ता (विलुपित्त) 1/1 वि उद्दवेत्ता (उद्दवेत्तु) 1/1 वि उत्तासयित्ता (उत्तासयित्तु) 1/1 वि अफड (अकड) भूक 2/1 अनि फरिस्सामि (कर) भवि 1/1 सक ति (अ)= इस प्रकार मण्णमाणे (मण्ण) व 1/1 29. जीविते = जीवन में । इह = इस (में)। जे = जो । पमत्ता=प्रमाद-युक्त। से वह । हता= मारने वाला। छेत्ता= छेदने वाला । भेत्ता = भेदने वाला । लुपिता= हानि करने वाला। वीलु पिता अपहरण करने वाला। उद्दवेत्ता उपद्रव करने वाला। उत्तासयित्ता= हैरान करने वाला । अकड = कभी नहीं किया गया । करिस्सामि = करूंगा । ति= इस प्रकार । मण्णमाणे = विचारता हुआ। 30. एवं (अ) = इस प्रकार जाणित्त, (जाण) संकृ दुक्खं (दुक्ख) 2/1 पत्तयः (अ)=प्रत्येक सातं (सात) 2/1 अणभिक्कंतं (अणभिक्कतं) 1. किसी समुदाय विशेप का बोध कराने के लिए 'एक वचन' या वहुवचन का प्रयोग किया जा सकता है । यहाँ 'से' का प्रयोग एक वचन में है । 2. बहुधा विशेपणात्मक वल के साथ प्रयुक्त होता है। चयनिका ] [ 95
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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