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________________ (परिवद ) व 3 / 2 सक सो (त) 1 / 1 सवि वा (श्र) = भीते (त) 2/2 स रियगे (गियग) 2 / 2 वि पच्छा (श्र) = वाद में परिवदेज्जा ( परिवद ) व 3 / 1 सक णालं [(ण) + (श्रलं )] ग (प्र) = नहीं. श्रलं (घ) = पर्याप्त ते (त) 1 / 2 सवि तव ( तुम्ह ) 6 / 1 स ताखाए (तारण) 4/1 वा ( 2 ) = या सरणाए (सरण) 4 / 1 तुमं (तुम्ह) 1 / 1 सपि () = भीस (त) 6/2 स से (त) 1/1 सवि ग (श्र ) = नहीं हसाए (हास) 4 / 1 किटुाए (किट्टु ) 4/1 रतीए (रति) 4/1 विनुमाए (विभूसा) 4 / 1 27. श्रभितं = बीती हुई । च = ही । सलु = वास्तव में । वयं = श्रायु को । सपेहाए = देखकर । ततो = बाद में । से = उसके । एगया = एक समय । मूढभाव : = मूर्खतापूर्ण यवस्था ( को ) । जरगयंति = उत्पन्न कर देते हैं । जिह = जिनके । वा = श्रीर। सद्धि = साथ में । संवसति = रहता है । ते = वे 1 व = ही। गं = उसको । एगदा = एक समय । रियगा = आत्मीय । पुन्वि = पहले । परिवदंति = बुरा-भला कहते हैं । सो = वह । वा = भी । रिगयगे = श्रात्मीयों को । परिवदेज्जा = बुरा-भला कहता है । णालं = ( ण + अलं ) = नहीं, पर्याप्त । ते = वे । तव = तुम्हारे । तारणाए = महारे के लिए | वा = या । सरणाए = सहायता के लिए। तुमं= तुम । पि= भी । तसि = उनके । से = वह । रग = नहीं। हासाए = मनोरंजन के लिए। किड्डाए : क्रीड़ा के लिए । रतीए: के लिए | 1 1 प्रेम के लिए । विनूसाए = == सजावट वि श्रहो विहाराए 28. इच्चैवं (अ) = इस प्रकार समुट्ठिते (समुट्ठित ) 1 / 1 ( होविहार ) 4 / 1 अंतरं (अंतर) 2 / 1 च (प्र) = ही खलु ( अ ) = सचमुच इमं (इम) 2 / 1 सवि सपेहाए = संपेहाए (सपेह ) संकृ घोरे (धीर) 1 / 1. वि मुहुत्तमवि [ ( मुहत्तं) + (वि) | मुहुत्तं (क्रिविप्र ): क्षरणभर के लिए. अवि (अ) = भी णो ( अ ) न पमादए ( पमाद ) विधि 1. संप्रदान के साथ 'अलं' का अर्थ 'पर्याप्त' होता है । 94 ] - = [ चयनिका
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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