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________________ सक सव्वाओ (सव्वा) 5/2 वि सहेति (सह) व 3/1 सक स्त्री अणेगरुवाओ (अणंगरूव-अणेगरूवा) 5/2 जोणीओ (जोणि) 5/2 संघेति (संघ) व 3/1 सक विरुवरूवे [(विरुव) वि (रुव) 2/2] फासे (फास) 2/2 पडिसंवेदयति (पडिसंवेदयति) व 3/1 सक अनि अपरिण्णायकम्मे = क्रिया समझी हुई नहीं । खलु =सचमुच । अयं = यह । पुरिसे = मनुष्य । जोजो । इमाओ=इन । दिसाओ= दिशाओं से। वा=या। अणुदिसाओ= अनुदिशाओं से। अणुसंचरति = परिभ्रमण करता है । सन्वाओ दिसाओ= सब दिशाओं से। सव्वाओ अणदिसाओ = सव अनुदिशाओं से । सहेति = सहन करता है । अणेगरुवाओ जोणीओ=अनेक प्रकार की योनियों से । संघेति =जोड़ता है। विरूवरूवे = अनेक रूपों को। फासे = स्पर्शो को। पडिसंवेदयति = अनुभव करता है। 5. तत्य (अ) = उसके लिए। खलु (अ) =ही भगवता (भगवाता 3/1 अनि परिण्णा (परिण्णा) 1/1 पवेदिता (पवेदित-पवेदिता) 1/1 वि इमस्स (इम) 4/1 सवि चेव (अ)=ही जीवियस्स (जीविय) 4/1 परिवंदण-माणण-पूयणाए [(परिवंदण-(माणण - (पूयण) 4/1] जाती-मरण-मोयणाए (जाती) (मरण)-मोयण 4/1] दुक्खपडिधात हेतु (दुक्ख)-(पडिघात)-हितु) 1/1] 5. तत्य = उसके लिए । खलु =ही । भगवता= भगवान् के द्वारा । परिणा =ज्ञान । पवेदिता= दिया हुआ । इमस्स चेय जीवियस्स= इस ही जीवन के लिए । परिवंदण-माणाण-पूयणाए प्रशंसा, आदर तथा पूजा के लिए । जाती-मरणमोयणाए =जन्म, मरण तथा मोक्ष के लिए । दुक्खपडिघात हेतु = दुःखों को दूर हटाने के लिए। 1. समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर ह्रस्व के स्थान पर कभी-कभी दीर्घ हो जाते हैं । (हैम प्राकृत व्याकरणः 1-4) चयनिका ] [ 81
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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