SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना। ज्ञानसूर्योदय नाटक जिसका कि यह हिन्दी अनुवाद आज हम अपने पाठ-' कोंके साम्हने लेकर उपस्थित है, जैन समाजमें बहुत परिचित है। इसकी दो तीन भाषा वचनिकायें भी हो चुकी है । परन्तु वर्तमान समयमें जिस ढंगके अनुवादको लोग पसन्द करते है, वचनिकाओंसे उसकी पूर्ति नहीं होती है, और इस कारण इस परमोत्तम नाटकका जैसा चाहिये, वैसा प्रचार नहीं होता है, ऐसा समझकर मैंने यह परिश्रम किया है। इस प्रयत्नमें मुझे कहातक मफलता प्राप्त हुई है, इसका विचार करना विद्वान पाठकोंका काम है। __ मूलग्रन्थपरसे यह अनुवाद किया गया है । जहातक बना है, इसे शब्दश. करनेका प्रयत्न किया है । तो भी कही २ वाक्य रचनाके ख्यालले अथवा विययको सरलतासे समझाने के विचारमे इसमे थोड़ा बहुत हेर फेर इच्छा न रहते भी किया है। गर्भीक तथा स्थानादिकी कल्पना प्रकरणके अनुसार मुझे खय। करनी पड़ी है। पहले विचार था कि, इसका गद्यका गद्यमें और पद्यका पद्यमें अनुवाद किया जाय,और नाटकोंका अनुवाद होता भी ऐसा ही है। परन्तु यह नाटक धर्मसम्बन्धी वादविवादका है, इसलिये इसमें भिन्न र धोके जो प्रमाणश्लोक तथा वाक्य दिये गये है, उन्हें ज्योंके यों रखना ही उचित समझा गया। इसके सिवाय अनेक श्लोक ऐसे भी देखे गये, जिनका अभिप्राय गद्यमें समझानेसे ही अच्छी तरहसे समझा जा सकता था। उनका पद्यमें अनुवाद न करके गद्यहीमें कर दिया गया है । अच्छे २ श्लोकोंको टिप्पणीमें लगा दिये है, जिससे पाठकगण उन्हें स्मरण रख सकें, और उनके अनुवादमें कुछ भूल रह गई हो, तो सुधार सकें। __ पहले इस प्रन्थमें जितने पद्य बनाये गये थे, वे सव वृजभाषामें थे। परन्तु पीछे अपने एक मित्रकी सम्मतिसे हमने बहुतसे पद्य खड़ी वोलीमें भी बनाकर शामिल कर दिये हैं। यदि यह खिचरी पाठकोंको पसन्द न आई, और इस प्रन्थका दूसरा संस्करण मुद्रित करानेका अवसर आया, तो उसमें सब कविता एक ही प्रकारकी कर दी जावेगी। .
SR No.010766
Book TitleGyansuryodaya Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy