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________________ २० ज्ञानसूर्योदय नाटक । श्राविका और तो कुछ नही है, एक दिन और एक रात पहलेका पडा हुआ नवनीत (मक्खन) अवश्य ही रक्खा है।' यति-तो वही लाकर दे दो। भूखकी ज्वाला पेटको जला रही है। श्राविका-महाराज! क्या मक्खन भी यतियोंके ग्रहण करने योग्य होता है? श्रीभगवतीसूत्रमें तो इसका निषेध किया है, महु मज्ज मंस मक्खण त्थीसंगे सव्व असुइठाणेसु । । उप्पजति चयंति य समुच्छिमा मणुयपंचेदी ॥ ___ "अर्थात्-मधुमें, मद्य, मासमें, मक्खनमे, स्त्रीसंगमे, तथा उसके सम्पूर्ण अपवित्र स्थानोंमें सम्मूर्च्छन मनुष्यपंचेन्द्री जीव उत्पन्न होते है, और मरते है ।" यति-इसी लिये तो कहते है कि, स्त्रियोंको सिद्धान्त वचन नही पढ़ाना चाहिये। इस विषयमें तू क्या विचार करती है ? सुन, णियदेहं छेत्तूणं संतीसो पुवकालम्मि । पारावयतणुमत्तं मंसं गिद्धस्स देइ सद्दिठि॥ । ..श्रीशांतिनाथ तीर्थंकरने पूर्व भवमें सम्यग्दृष्टि होकर भी कबूतरके शरीरके बराबर अपने देहका मास काटकर गृद्धपक्षीको दिया था । सो हे उपासिके । हम गृद्धसे भी निकृष्ट नहीं है । हम पात्र है । भला जब विदेह क्षेत्रमें शान्तिनाथके सम्यग्दृष्टी जीवने कुपात्र गृद्धको मास दिया था, तब क्या तू उनसे भी अधिक नवान हो गई ? परन्तु तूपढ़ी हुई है, इसी लिये ऐसा विचार करती है! श्राविका-तो भगवन् ! क्या गुरुके लिये हिंसा करना चाहिये। ... यति-करना चाहिये, क्या इसमें तुझे कुछ सन्देह है ? सुन, शास्त्रमें कहा है कि,
SR No.010766
Book TitleGyansuryodaya Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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