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________________ ज्ञानसूर्योदय नाटक। रामचन्द्र पीछे खस्य शान्त और परिपूर्णबुद्धि होकर वैगगी हो गया था।" पूर्वकालमें जम्बूस्वामि, सुदर्शन, धन्यकुमार आदि महाभाग्य भी पहले संसारका आरंभ करके अन्तमें शान्त होकर संसारसे विरक्त हो गये है । उसी प्रकारसे इस समय ये सभासदगण अपने पुण्यके उदयसे उपशान्तचित्त हो रहे है । अतएव इस विषयमें आश्चर्य और सन्देह करनेके लिये जगदं नहीं है। नटी-अस्तु नाम । अव यह वतलाइये कि, इन सभ्यजनोंका चित्त किस प्रकारकी भावनासे अथवा किस प्रकारके दृश्यसे रंजायमान होगा? __ सूत्रधार आयें ! वैराग्य भावनासे अर्थात् विरागरसपूर्ण नाटकके कौतुकसे ही इन लोगोंका चित्त आहादित होगा । शृंगार हास्यादि रसोंका आचरण तो आज कल लोग स्वभावसे ही किया करते है। उनका दृश्य दिखलानेकी कोई आवश्यकता नहीं है। उनसे मनोरजन भी नहीं होगा। क्योंकि जो भावना-जो दृश्य अदृष्टपूर्व होता है, अर्थात् जो लोगोंके लिये सर्वथा नवीन होता है, वही आश्चर्यकारी और हृदयहारी होता है । किसीने कहा भी है कि, 'अदृष्टपूर्व लोकानां प्रायो हरति मानसम् । दृश्यश्चन्द्रो द्वितीयायां न पुनः पूर्णिमोद्भवः ॥ ' अर्थात्-जिस चीजको पहले कभी न देखी हो, लोगोंका मन प्रायः उसीसे हरण होता है-उसीके देखनेके लिये उत्सुक होता
SR No.010766
Book TitleGyansuryodaya Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1909
Total Pages115
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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