SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३७ ] होने पावे नहीं. और दूसरे भी बडे राजाओं को व बादशाहों को उपदेश से, धनसे, या किसी प्रकारसे भी समझाकर उन्हों के राज्य में भी जीवदया की घोषना करवाई, बहुत विशेष कार्य किये इसलिये उनके चरित्र में उनबातों का उल्लेख किया गया है. श्रेणिक, कौणिक, संपति, वीरविक्रमादिस वगैरह बहुतसे जैनधर्मी राजा महाराजाओंने जीवदया अपने अपने राज्य में अवश्य ही पलाईथी, परंतु सामान्य बात होने से उन्होंके चरित्रों में नहीं लिखी गई. जिसपर कोई कहे कि श्रेणिकादि राजा महाराजाओं के चरित्रों में जीवदया पलानेका नहीं लिखा, इसलिये उन्होंने अमारी घोषणा नहीं करवाई थी, तो ऐसा कहने वाले को अज्ञानी समझना चाहिये. क्योंकि कदाचित् उन राजा महाराजाओंके व्रत पञ्चक्खाण करने का योग होवे या चारित्र मोहनीय अंतराय कर्म के योग से नहीं भी होवे तो भी जिनेश्वर भगवान् के भक्त होने से अपनी अपनी यथा शक्ति जीवदया की घोषणा अपने २ राज्यमें अवश्यही करवाते थे इसलिये उन्होंके चरित्रोंमें अमारी घोषणा का उल्लेख नहीं किया गया होवे तो भी अवश्य ही समझना चाहिये. तैसेही पहिले के संघ पतियोंने चढावे करके देवद्रव्यकी वृद्धि अवश्य ही की होगी परंतु सामान्य वात होने से उन्होंके चरित्रों में उसका उल्लेख नहीं किया गया और कुमारपाल महाराजा १२ व्रतधारी दृढ श्रावक हुए, छ री पालते हुए वडा भारी संघ निकाला, उत्कृष्ट भक्तिवाले हुए, सवा करोड रुपयों की जगह पांच करोड रुपयों का चढावा लेने को शक्तिमान थे, तो भी गरीब जैसे सामान्य वेश आकार वाले एक पुरुषने चढावे की बोलिका सवा करोड देने की अभिलाषा जाहीर की तब उनके भावदेखकर उनकीइच्छा पूर्णकरनेकेलिये कुमारपाल महाराजाने मालाउनकोदिलवाई. यह विशेषभाक्त की सूचना करानेवाला उत्कृष्टकार्य होनेसे उनका उल्लेख किया है, जिसका भावार्थसमझे बिनाही पहिलेके संघ पतियोंने चढावाकरके देवद्रव्यकीवृद्धि नहींकी ऐसाकहना बडी भूल है।
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy