SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३६] अनुसरणीय हैं. इसलिये इन महान् उत्तम पुरुषोंने चढावा करके जो देव द्रव्य की वृद्धि की थी उस शुभ कार्यको अभी यथा शक्ति अंगीकार करने योग्य है, जिसको चरितानुवाद के नामसे निषेध करना सर्वथा अनुचित है. देखो- अगर चरितानुवाद के नामसे शुभ कार्य भी निषेध करने में आवे तो हजारों महान् पुरुषों की अवज्ञा होनेसे और धर्म कथानुयोग उत्थापन करने से उत्सूत्र प्ररूपणा का बडा भारी दोष आवे. इसलिये चरितानुवादके शुभ कार्य शक्ति के अनुसार अंगीकार करने योग्य हैं. परंतु निषेध करने योग्य नहीं हैं. । ६१ अगर कोई कहे कि कुमारपाल महाराजा के पहिले भी बहुत संघ पति हुए हैं, परंतु देव द्रव्यकी वृद्धि करने के लिये चढावा करनेका कोई प्राचीन उल्लेख देखने में नहीं आता, इसलिये चढावा करने का रिवाज नवीन मालूम होता है, ऐसा कहना भी उचित नहीं है. क्योंकि देखो जगड शाह के वचनसे ही चढावा प्राचीन साबित होता है यह बात ऊपर की ५२ वी कलम में खुलासा लिख चुके हैं, इसलिये चढावे के रिवाज को नवीन कहना योग्य नहीं है और भी देखो जो बात सामान्य होती है वह नहीं लिखी जाती परंतु जो बात विशेष होती है वहीं लिखने में आती है । पहिले के संघपतियों में चढावे की बात सामान्य होगी इसलिये नहीं लिखी गई होगी. जैसे अभी आरती, पूजा, रथयात्रा, वगैरह के चढावे प्रायः सभी संघपति यथा शक्ति अवश्यही लेते हैं, तो भी सामान्य वात गोनेसे उनका उल्लेख नहीं किया जाता. देखिये- श्रीवीरप्रभूके शासनमें बडे बडे प्रभावक बहुत आचार्य होगये हैं तो भी सामान्य बात होने से सब पूर्वाचार्यों के विस्तार पूर्वक उल्लेख नहीं किये गये परंतु हेमचन्द्राचार्य महाराजने ३॥ करोड श्लोक प्रमाणे ग्रंथोकी रचना करी और कुमारपाल महाराजा को जैन धर्म का प्रतिबोध दिया तब कुमारपाल महाराजाने अपने १८ देश के राज्य में अमारी घोषणा करवाई, कोई भी पशु पक्षी की हिंसा
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy