SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिया नहीं, सत्य असत्य न्याय अन्याय के फैसले देनेवाले. साक्षी नेमे नहीं, व्यवस्था संभालने संबंधी मकान के मालिक की सही भिजवाई नहीं और गालियों का सरणा लेकर पूर्णिमाकी बडी फजर ही मांडवगढ की यात्राके नामसे विहार करगये. फिर बोलते हैं हम तो शास्त्रार्थ करने को तयार थे यह कैसी कपट बाजी है. ५ अपनी कल्पना मुजब बातें लिखकर प्रकट करना सहज बात है, परंतु जब अपने सामने प्रतिवादी आकर उसका खुलासा करने को तैयार होवे तब उन बातोंको शास्त्रार्थसे सभामें सावित करना बडा मुश्किल होता है, और पीछे लोक लज्जा छोडकर अपनी भूलको स्वीकार करने में भी बडी मुश्किल समझते हैं, इसलिये अपनी बातको रखने के लिये अनेक तरहके प्रपंच करने पड़ते हैं. एक झूठके पीछे अनेक झूठ बोलने पडते हैं, एक कपटके पीछे अनेक कपट करने पड़ते हैं. यह बात देवद्रव्य के शास्त्रार्थ के मामले में भी प्रत्यक्षतया देखने में आती है. हम शास्त्रार्थ करने के लिये तैयार हैं, तैयार हैं, ऐसी बातें करते हैं. मगर शास्त्रार्थ संबंधी न्याय के अनुसार नियमादि बनानेके लिये पत्र भेजें उन्होंको हाथमें लेते भी डरते हैं और उसकी सुव्यवस्था करने में मौन हैं. अगर सच्चे दिलसे न्याय के अनुसार शास्त्रार्थ करनेको चाहते हो तो फिर सत्यग्रहण 'करनेकी, झूठेको शिक्षा करनेकी सही करने और साक्षी, मध्यस्थ, नियमादि बनानमें इतनी भाग नास क्यों करते हैं. शास्त्रार्थकी बातें करने में तो मुंह छुपाते हैं और फजूल बातें लिखवाकर क्लेश बढानेमें आगे होते हैं, यह कैसी कपटबाजी है. इसका विचार पाठकगण आपही करलेंगे. . विजयधर्मसूरिजी का वडा भारी अनर्थ । .. : : - वीतराग प्रभु के भक्तलोग अपने भावसे, शक्तिके अनुसार भगवान् की भाक्तिके लिये पूजा, आरती, स्वग्न, पालना वगैरहके चढावे बोलते हैं,
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy