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________________ पत्रांक ९ स्वरोदयशान १० जीवतत्वके संबंध में विचार ११ जीवाजीवविभक्ति १२ विवाहसंबंधी २० वाँ वर्ष १३ अनुपम लाभ १४ एक अद्भुत बात १५ आत्मशक्ति में फेरफार १६ अर्थकी बेदरकारी न रखें १७ सत्संगका अभाव १८ आत्माका स्वरूप १९ आत्म के जान लेनेपर विभाम २० तत्त्व पानेके लिये उत्तम पात्र जैन दर्शन में भिन्न भिन्न मत प्रचलित होने के कारण धर्मप्राप्तिकी कठिनता प्रतिमाकी सिद्धि २१ वाँ वर्ष २१ सत्पुरुषकी इच्छा २२ आत्मा अनादिसे भटकी है २३ मेरी ओर मोहदशा न रक्खो २४ शोककी न्यूनता और पुरुषार्थकी अधिकता २५ आत्मप्रातिके मार्गकी खोज २६ धर्म गुप्त वस्तु है २७ व्यवहारशुद्धि २८ आशीर्वाद देते रहो २९ वैराग्यविषयक आत्मप्रवृत्ति ३० सत्पुरुषका उपदेश ३१ निर्ब्रयप्रणीत धर्म ३२ मोक्षके मार्ग दो नहीं ३३ मोक्ष हथेली में ३४ मैत्री आदि चार भावनायें ३५ शास्त्र मार्ग कहा है, मर्म नहीं ३६ देहत्यागका भय न समझो ३७ संयति मुनिधर्म ३८ पुनर्जन्मका निश्वय ३९ राजमार्ग धर्मध्यान विषय-सूची पत्रांक पृष्ठ १२७-९ ४१ पुनर्जन्म १५६ १२९ | ४२ दर्शनोंका तात्पर्य समझनेके लिये यथार्थ दृष्टि १५६ १३ | ४३ माक्षमाला १५७ १३०-१ ४४ समस्त शास्त्रोको जाननेका, शानका, योगका, और भक्ति आदि सबका प्रयोजन निज स्वरूपकी प्राप्ति १३२ १५७ १३२ ४५ जगत्‌मै निर्लेप रहो १५८ १३२ ४६ मेरे ऊपर समभावसे शुद्ध राग रक्खो १५८ १३२ | ४७ मतभेदके कारण आत्माको निजधर्मकी अप्राप्ति १५८ ४० जिससे आत्मत्व, सम्यग्ज्ञान और यथार्थदृष्टि मिले, वही मार्ग मान्य करना चाहिये पुनर्जन्मसंबंधी मैं किसी गच्छ नहीं - आत्मामें हूँ १३४४९ सत्पुरुष कौन १३५५० पुनर्जन्म की सिद्धि ( कविता ) १३६-९ । ५१ स्त्रीसंबंधी विचार १३२ - ३ | ४८ आत्माका एक भी भव सुन्दर हो जाय तो अनंत भवकी कसर निकल जाय जैन संबंधी विचार भूलकर सत्पुरुषोंके चीरमें उपयोग १३३ १३३ १३३ ५२ जगत् के भिन्न भिन्न मत और दर्शन दृष्टिका भेदमात्र है ( कविता ) १४० १४० ૧૪૦ ૧૪. १४० · ५६ गृहस्थाश्रम संबंधी १४१ १४१-२ १४२ १४३ ५७ इतना अवश्य करना १४४ ५८ जगत्की मोहिनी १४४ | *५९ निजस्वरूपके दर्शन की अप्राप्ति ५३ प्रतापी पुरुष ५४ कर्मकी विचित्र स्थिति ५५ दुखियाओं में सबसे अग्रणी तवशान की गुफाका दर्शन अंतर्शान्ति २२ वाँ वर्ष पृष्ठ १४६-७ १४७-५० | ६४ आत्मचर्या १५०-१६५ दो प्रकारका धर्म १५१-२ | ६६ किस दृष्टिले सिद्धि होती है ६७ बाल, युवा, और वृद्ध तीन अवस्थायें १५३ ६८ तीव्र बंधका अभाव १५२ - ५ | ६९ सब दर्शनोंसे उच्च गति २३ वाँ वर्ष १५९ १५९ १६० १६० १६०-१ १६१-२ १६२ १:२ १६३ १६३-४ १६४-५ १६५ १६५ १४४-५ *६० सहज १६७-८ १४५ | ६१ आध्यात्मिक विकासक्रम ( गुणस्थान) १६८-७१ १४६ | ६२ जैनधर्म भी पवित्र दर्शन है १७१ १४६ | ६३ वेदान्तकी असंगति १७१-२ १६६ १६७ १६७ १७२-५ १७५-६ १७६ १७७ १७७-८ १७८
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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