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________________ ७३४ श्रीमद् राजचन्द्र [७७९ उपायसहित समस्त पदोंको, मोक्षप्राप्त जीवको, तथा जीव अजीव आदि सब तत्वोंको स्वीकार किया है। मोक्ष बंधकी अपेक्षा रखता है तथा बंध, बंधके कारण आस्रव, पुण्य-पाप कर्म, और बंधनेवाली नित्य अविनाशी आत्माका; मोक्षकी, मोक्षके मार्गकी, संवरकी, निर्जराकी और बंधके कारणोंके दूर करनेरूप उपायकी अपेक्षा रखता है । जिसने मार्ग देखा, जाना और अनुभव किया है, वह नेता हो सकता है। अर्थात् ' मोक्षमार्गका नेता' कहकर उसे परिप्राप्त ऐसे सर्वज्ञ सर्वदर्शी वीतरागको स्वीकार किया है । इस तरह ' मोक्षमार्गके नेता ' इस विशेषणसे जीव अजीव आदि नव तत्त्व, छह द्रव्य, आत्माका अस्तित्व आदि छह पद, और मुक्त आत्माको स्वीकार किया गया है। ____ मोक्षमार्गके उपदेश करनेका-उस मार्गमें ले जानेका कार्य देहधारी साकार मुक्त पुरुष ही कर सकता है, देहरहित निराकार जीव नहीं कर सकता। यह कहकर यह सूचित किया है कि आत्मा स्वयं परमात्मा हो सकती है-मुक्त हो सकती है। तथा इससे यह सूचित किया है कि ऐसे देहधारी मुक्त पुरुष ही बोध कर सकते हैं, इससे देहरहित अपौरुषेय बोधका निषेध किया गया है। कर्मरूपी पर्वतके भेदन करनेवाला' कहकर यह सूचित किया है कि कर्मरूप पर्वतोंके भेदन करनेसे मोक्ष होती है; अर्थात् जीवने कर्मरूपी पर्वतोंका स्ववीर्य द्वारा देहधारीरूपसे भेदन किया, और उससे वह जीवन्मुक्त होकर मोक्षमार्गका नेता-मोक्षमार्गका बतानेवाला हुआ । इससे यह सूचित किया है कि बार बार देह धारण करनेका, जन्म-मरणरूप संसारका कारण जो कर्म है, उसके समूल भेदन करनेसे-नाश करनेसे-जीवको फिर देहका धारण करना नहीं रहता । इससे यह बताया है कि मुक्त आत्मा फिरसे अवतार नहीं लेती। 'विश्वतत्त्वका ज्ञाता'-समस्त द्रव्यपर्यायात्मक लोकालोकका-विश्वका जाननेवालाकहकर, मुक्त आत्माका अखंड स्वपर ज्ञायकपना बताया है। इससे यह सूचित किया है कि मुक्त आत्मा सदा ज्ञानरूप ही है। जो इन गुणोंसे सहित है, उसे उन गुणोंकी प्राप्तिके लिये मैं वन्दन करता हूँ ' यह कहकर यह सूचित किया है कि परम आप्त, मोक्षमार्गके लिये विश्वास करने योग्य, वंदन करने योग्य, भक्ति करने योग्य तथा जिसकी आज्ञापूर्वक चलनेसे निःसंशय मोक्ष प्राप्त होती है उनको प्रगट हुए गुणोंकी प्राप्ति होती है-वे गुण प्रगट होते हैं-ऐसा जो कोई भी हो, मैं उसे वंदन करता हूँ। इससे यह सूचित किया है कि उक्त गुणोंसे सहित मुक्त परम आप्त वंदनके योग्य हैं-उनका बताया हुआ वह मोक्षमार्ग है, और उनकी भक्तिसे मोक्षकी प्राप्ति होती है, तथा उनकी आज्ञापूर्वक चलनेवाले भक्तिमानको, उनको जो गुण प्रगट हुए हैं वे गुण प्रगट होते हैं। ३. वीतरागके मार्गकी उपासना करनी चाहिये । ७८० वनक्षेत्र उत्तरखंडा,प्र. आसोज वदी९ रवि.१९५४ . ॐ नमः . अहो जिणेहिऽसावज्जा, वित्ती साहूण देसिया। मोक्खसाहणउस्स, साहुदेहस्स धारणा ॥
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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