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________________ विविध पत्र मावि संग्रह-३०वाँ वर्ष न होनेके कारण, निरंतर समागमका योग न बननेके कारण, उस वचनका उस तरहका श्रवण स्मरणमें न रहनेके कारण, बहुतसे भावोंका स्वरूप जाननेमें आवर्तनकी आवश्यकता होनेके कारण, तथा अनुप्रेक्षाके बलकी वृद्धि होनेके लिए, वीतरागश्रुत-वीतरागशाख-एक बलवान उपकारी साधन है । यद्यपि प्रथम तो उस महात्मा पुरुषद्वारा ही उसके रहस्यको जानना चाहिये, परन्तु बादमें तो विशुद्ध दृष्टि हो जानेपर, वह श्रुत महात्माके समागमके अंतरायमें भी बलवान उपकारक होता है। अथवा जहाँ उन महात्माओंका सर्वथा संयोग ही नहीं हो सकता, वहाँ भी विशुद्ध दृष्टिवालेको वीतरागश्रुत परम उपकारी है, और इसीलिये महान् पुरुषोंने एक श्लोकसे लगाकर द्वादशांगतककी रचना की है। ___ उस द्वादशांगके मूल उपदेष्टा सर्वज्ञ वीतराग हैं। महात्मा पुरुष उनके स्वरूपका निरंतर ध्यान करते हैं। और उस पदकी प्राप्तिमें ही सब कुछ गर्मित है, यह प्रतातिसे अनुभवमें आता है। सर्वज्ञ वीतरागके वचनको धारण करके ही महान् आचार्योंने द्वादशांगकी रचना की थी, और उनकी आज्ञामें रहनेवाले महात्माओंने अन्य अनेक निर्दोष शास्त्रोंकी रचना की है। द्वादशांगके नाम निम्न प्रकार हैं: (१) आचारांग, (२) सूत्रकृतांग, (३) स्थानांग, (४) समवायांग, (५) भगवती, (६) ज्ञाताधर्मकथांग, (७) उपासकदशांग, (८) अंतकृतदशांग, (९) अनुत्तरौपपातिका (१०) प्रश्नव्याकरण, (११) विपाक और (१२) दृष्टिवाद । उनमें इस प्रकारसे निरूपण किया है: कालदोषसे उनमेंके अनेक स्थल तो विस्मृत हो गये हैं, और केवल थोडे ही स्थल बाकी बचे हैं: जो अल्प स्थल बाकी बचे हैं, उन्हें श्वेताम्बराचार्य एकादश अंगके नामसे कहते हैं । दिगम्बर इससे सहमत नहीं हैं और वे ऐसा कहते हैं:-- विसंवाद अथवा मतामहकी दृष्टिसे तो उसमें दोनों सम्प्रदाय सर्वथा भिन्न भिन्न मार्गकी तरह देखनेमें आते हैं, परन्तु जब दीर्घदृष्टि से देखते हैं तो उसका कुछ और ही कारण समझमें आता है।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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