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________________ : भीमद् राजचन्द्र [१९४ ... ऐसे महात्मा पुरुषोंका योग मिलना अत्यन्त अत्यन्त कठिन है । जब श्रेष्ठ देश कालमें भी ऐसे महात्माका योग होना कठिन है, तो ऐसे दुःख-प्रधान कालमें वैसा हो तो इसमें कुछ कहना ही नहीं रहता । कहा भी है: यपि उस महात्मा पुरुषका योग कचित् मिलता भी है, तो भी यदि कोई शुद्ध वृत्तिमान मुमुक्षु पुरुष हो तो वह उस मूहुर्तमात्रके समागममें ही अपूर्व गुणको प्राप्त कर सकता है। जिन महात्मा पुरुषोंके वचनोंके प्रतापसे चक्रवती राजा भी एक मुहूर्तमात्रमें ही अपना राजपाट छोड़कर भयंकर वनमें तपश्चर्या करनेके लिये चले जाते थे, उन महात्मा पुरुषोंके योगसे अपूर्व गुण क्यों प्राप्त नहीं हो सकते ! श्रेष्ठ देश कालमें भी कचित् ही महात्माका योग मिलता है । क्योंकि वे तो अप्रतिबद्ध-विहारी होते हैं । फिर ऐसे पुरुषोंका नित्य संग रह सकना तो किस तरह बन सकता है, जिससे मुमुक्षु जीव सर्व दुःखोंका क्षय करनेके अनन्य कारणोंकी पूर्णरूपसे उपासना कर सके ? उसके मार्गको भगवान् जिनने इस तरह अवलोकन किया है: नित्य ही उनके समागममें आज्ञाधीन रहकर प्रवृत्ति करनी चाहिये, और उसके लिये बाह्यआभ्यंतर परिप्रहका त्याग करना ही योग्य है। . जो उस त्यागको सर्वथा करनेमें समर्थ नहीं हैं, उन्हें उसे निम्न प्रकारसे एकदेशसे करना उचित है। उसके स्वरूपका इस तरह उपदेश किया है:-- उस महात्मा पुरुषके गुणोंकी अतिशयतासे, सम्यक् आचरणसे, परम ज्ञानसे, परम शांतिसे, परम निवृत्तिसे, मुमुक्षु जीवकी अशुभ वृत्तियाँ परावृत्त होकर शुभ स्वभावको पाकर निजस्वरूपके प्रति सन्मुख होती जाती है। उस पुरुषके वचन यधपि आगमस्वरूप हैं, तो भी वारंवार अपनेसे बचन-योगकी प्रवृत्ति
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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