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________________ पत्र ५७६, ५७७, ५७८] विविध पत्र आदि संग्रह-२९वाँ वर्ष ४७९ ... 'प्रारब्ध है', ऐसा मानकर ज्ञानी उपाधि करता है, ऐसा मालूम नहीं होता । परन्तु परिणतिसे छूट जानेपर भी त्याग करते हुए बाह्य कारण रोकते हैं, इसलिये ज्ञानी उपाधिसहित दिखाई देता है, फिर भी वह उसकी निवृत्ति के लक्षका नित्य सेवन करता है। ५७६ बम्बई, पौष वदी ९ गुरु. १९५२ देहाभिमानरहित सत्पुरुषोंको अत्यंत भक्तिपूर्वक त्रिकाल नमस्कार हो. ज्ञानी-पुरुषोंने बारम्बार आरम्भ-परिग्रहके त्यागकी उत्कृष्टता कही है, और फिर फिरसे उस श्यागका उपदेश किया है, और प्रायः करके स्वयं भी ऐसा ही आचरण किया है, इसलिये मुमुक्षु पुरुषको अवश्य ही उसकी अल्पता करना चाहिये, इसमें सन्देह नहीं है । कौन कौनसे प्रतिबंधसे जीव आरम्भ-परिग्रहका त्याग नहीं कर सकता, और वह प्रतिबंध किस तरह दूर किया जा सकता है, इस प्रकारसे मुमुक्षु जीवको अपने चित्तमें विशेष विचार-अंकुर उत्पन्न करके कुछ भी तथारूप फल लाना योग्य है । यदि वैसे न किया जाय तो उस जीवको मुमुक्षुता नहीं है, ऐसा प्रायः कहा जा सकता है । आरम्भ और परिग्रहका त्याग होना किस प्रकारसे कहा जाय, इसका पहले विचार कर, पीछेसे उपरोक्त विचार-अंकुरको मुमुक्षु जीवको अपने अंतःकरणमें अवश्य उत्पन्न करना योग्य है । ५७७ बम्बई, पौष वदी १३ रवि. १९५२ . उत्कृष्ट संपत्तिके स्थान जो चक्रवर्ती आदि पद हैं, उन सबको अनित्य जानकर विचारवान पुरुष उन्हें छोड़कर चल दिये हैं; अथवा प्रारब्धोदयसे यदि उनका वास उसमें हुआ भी तो उन्होंने अमाछतरूपसे उदासीनभावसे उसे प्रारब्धोदय समझकर ही आचरण किया है, और त्याग करनेका हो लक्ष रक्खा है। ५७८ महात्मा बुद्ध ( गौतम ) जरा, दारिद्रय, रोग, और मृत्यु इन चारोंको, एक आत्मज्ञान के बिना अन्य सब उपायोंसे अजेय समझकर, उनकी उत्पत्तिके हेतुभूत संसारको छोड़ कर चले जाते हुए। श्रीऋषभ आदि अनंत ज्ञानी-पुरुषोंने भी इसी उपायकी उपासना की है, और सब जीवोंको उस उपायका उपदेश दिया है । उस आत्मज्ञानको प्रायः दुर्लभ देखकर, निष्कारण करुणाशील उन सत्पुरुषोंने भक्ति-मार्गका प्रकाश किया है, जो सब अशरणको निश्चल शरणरूप और सुगम है ।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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