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________________ ४१२ श्रीमद् राजचन्द्र पत्र ४४७ गांधीजीके प्रभोंके उत्तर द्वेष आदि परिणाम ही जन्मके हेतु हैं; ये जिसके नहीं हैं, ऐसा ईश्वर अवतार धारण करे, यह बात विचारनेसे यथार्थ नहीं मालूम होती । ' वह ईश्वरका पुत्र है और था' इस बातको भी यदि किसी रूपकके तौरपर विचार करें तो ही यह कदाचित् ठीक बैठ सकती है, नहीं तो यह प्रत्यक्ष प्रमाणसे बाधित है । मुक्त ईश्वरके पुत्र हो, यह किस तरह माना जा सकता है ? और यदि मानें भी तो उसकी उत्पत्ति किस प्रकार स्वीकार कर सकते हैं ! यदि दोनोंको अनादि मानें तो उनका पिता-पुत्र संबंध किस तरह ठीक बैठ सकता है ! इत्यादि बातें विचारणीय हैं । जिनके विचार करनेसे मुझे ऐसा लगता है कि वह बात यथायोग्य नहीं मालूम हो सकती। १५. प्रश्नः-पुराने करारमें जो भविष्य कहा गया है, क्या वह सब ईसाके विषयमें ठीक ठीक उतरा है ? उत्तरः-यदि ऐसा हो तो भी उससे उन दोनों शास्त्रोंके विषयमें विचार करना योग्य है। तथा इस प्रकारका भविष्य भी ईसाको ईश्वरावतार कहने में प्रबल प्रमाण नहीं है। क्योंकि ज्योतिष आदिसे भी महात्माकी उत्पत्ति जानी जा सकती है । अथवा भले ही किसी ज्ञानसे वह बात कही हो परन्तु वह भाविष्य-वेत्ता सम्पूर्ण मोक्ष-मार्गका जाननेवाला था, यह बात जबतक ठीक ठीक प्रमाणभूत न हो, तबतक वह भविष्य वगैरह केवल एक श्रद्धा-पाह्य प्रमाण ही है; और वह दूसरे प्रमाणोंसे बाधित न हो, यह बुद्धिमें नहीं आ सकता । १६. प्रश्न:-इस प्रश्नमें 'ईसामसीह के चमत्कारके विषयमें लिखा है। उत्तरः-जो जीव कायामेंसे सर्वथा निकलकर चला गया है, उसी जीवको यदि उसी कायामें दाखिल किया गया हो अथवा यदि दूसरे जीवको उसी कायामें दाखिल किया हो तो यह होना संभव नहीं है, और यदि ऐसा हो तो फिर कर्म आदिकी व्यवस्था भी निष्फल ही हो जाय । बाकी योग आदिकी सिद्धिसे बहुतसे चमत्कार उत्पन्न होते हैं; और उस प्रकारके बहुतसे चमत्कार ईसाको हुए हों तो यह सर्वथा मिथ्या है, अथवा असंभव है, ऐसा नहीं कह सकते । उस तरहकी सिद्धियाँ आत्माके ऐश्वर्यके सामने अल्प हैं-आत्माके ऐश्वर्यका महत्व इससे अनंत गुना है। इस विषयमें समागम होनेपर पूछना योग्य है। १७. प्रश्न:-आगे चलकर कौनसा जन्म होगा, क्या इस बातकी इस भवमें खबर पड़ सकती है ! अथवा पूर्वमें कौनसा जन्म था, इसकी कुछ खबर पड़ सकती है ! उत्तर: हाँ, यह हो सकता है । जिसे निर्मल ज्ञान हो गया हो उसे वैसा होना संभव है। जैसे बादल इत्यादिके चिह्नोंके ऊपरसे बरसातका अनुमान होता है, वैसे ही इस जीवकी इस भवकी चेष्टाके ऊपरसे उसके पूर्व कारण कैसे होने चाहिये, यह भी समझमें आ सकता है-चाहे थोडे ही अंशोंसे समझमें आये । इसी तरह वह चेष्टा भविष्यमें किस परिणामको प्राप्त करेगी, यह भी उसके स्वरूपके ऊपरसे जाना जा सकता है, और उसके विशेष विचार करनेपर भाविष्यमें किस भवका होना संभव है, तथा पूर्वमें कौनसा भव था, यह भी अच्छी तरह विचारमें आ सकता है। १८. प्रश्नः-दूसरे भवकी खबर किसे पड़ सकती है। उत्तर:-इस प्रश्नका उत्तर ऊपर आ चुका है।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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