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________________ रायचन्द भाईके कुछ संस्मरण प्रकरण पहला प्रास्ताविक में जिनके पवित्र संस्मरण लिखना आरंभ करता हूँ, उन स्वर्गीय श्रीमद् राजचन्द्रकी आज जन्मतिथि है । कार्तिक पूर्णिमा ( संवत् १९७९) को उनका जन्म हुआ था। मैं कुछ यहाँ श्रीमद् राजचन्द्रका जीवनचरित्र नहीं लिख रहा हूँ। यह कार्य मेरी शक्तिके बाहर है । मेरे पास सामग्री भी नहीं । उनका यदि मुझे जीवनचरित्र लिखना हो तो मुझे चाहिये कि मैं उनकी जन्मभूमि ववाणीआ बंदरमें कुछ समय बिताऊँ, उनके रहनेका मकान देखें, उनके खेलने कूदनेके स्थान देवू, उनके बाल-मित्रोंसे मिलूं, उनकी पाठशालामें जाऊँ, उनके मित्रों, अनुयायियों और सगे संबंधियोंसे मिलू, और उनसे जानने योग्य बातें जानकर ही फिर कहीं लिखना आरंभ करूँ । परन्तु इनमें से मुझे किसी भी बातका परिचय नहीं । इतना ही नहीं, मुझे संस्मरण लिखनेकी अपनी शक्ति और योग्यताके विषयमें भी शंका है। मुझे याद है मैंने कई बार ये विचार प्रकट किये हैं कि अवकाश मिलनेपर उनके संस्मरण लिलूँगा। एक शिष्यने जिनके लिये मुझे बहुत मान है, ये विचार सुने और मुख्यरूपसे यहाँ उन्हींके संतोषके लिये यह लिखा है । श्रीमद् राजचन्द्रको मैं रायचंद भाई' अथवा 'कवि' कहकर प्रेम और मानपूर्वक संबोधन करता था। उनके संस्मरण लिखकर उनका रहस्य मुमुक्षुओंके समक्ष रखना मुझे अच्छा लगता है । इस समय तो मेरा प्रयास केवल मित्रके संतोषके लिये है। उनके संस्मरणोंपर न्याय देनेके लिये मुझे जैनमार्गका अच्छा परिचय होना चाहिये, मैं स्वीकार करता हूँ कि वह मुझे नहीं है। इसलिये मैं अपना दृष्टि-बिन्दु अत्यंत संकुचित रखूगा। उनके जिन संस्मरणोंकी मेरे जीवनपर छाप पड़ी है, उनके नोट्स, और उनसे जो मुझे शिक्षा मिली है, इस समय उसे ही लिखकर मैं संतोष मानूंगा। मुझे आशा है कि उनसे जो लाभ मुझे मिला है वह या वैसा ही लाभ उन संस्मरणोंके पाठक मुमुक्षुओंको भी मिलेगा। 'मुमुक्षु' शब्दका मैंने यहाँ जान बूझकर प्रयोग किया है। सब प्रकारके पाठकोंके लिये यह प्रयास नहीं। मेरे ऊपर तीन पुरुषोंने गहरी छाप डाली है—टाल्सटॉय, रस्किन और रायचंद भाई । टाल्सटॉयने अपनी पुस्तकोंद्वारा और उनके साथ थोडे पत्रव्यवहारसे; रस्किनने अपनी एक ही पुस्तक ' अन्दु दिस लास्ट'से, जिसका गुजराती नाम मैंने 'सर्वोदय ' रक्खा है; और रायचन्द भाईने अपने साथ गाह परिचयसे । जब मुझे हिन्दूधर्ममें शंका पैदा हुई उस समय उसके निवारण करनेमें मदद करनेवाले रायचंद भाई थे । सन् १८९३ में दक्षिण
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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