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________________ भीमद् राजचन्द्र [पत्र ६९ पक्षपात भी नहीं है, ऐसा होनेपर भी कुछ बातें ऐसी हैं जिनको उसे बाह्याचारमें करना पड़ता है, इसके लिये उसे खेद है। उसका अब एक विषयको छोड़कर दूसरे विषयमें ठिकाना नहीं । यद्यपि वह पुरुष तीक्ष्ण उपयोगवाला है, तथापि उस तीक्ष्ण उपयोगको दूसरे किसी भी विषयमें लगानेका वह इच्छुक नहीं है। बम्बई, वि. सं. १९४६ एक बार वह स्वभुवनमें बैठा था। जगत्में कौन सुखी है, उसे जरा देखू तो सही । फिर अपने लिये अपना विचार करूँ । इसकी इस अभिलाषाकी पूर्ति करनेके लिये अथवा स्वयं उस संग्रहस्थानको देखनेके लिये बहुतसे पुरुष ( आत्मायें), और बहुतसे पदार्थ उसके पास आये । " इनमें कोई जड़ पदार्थ न था।" " कोई अकेली आत्मा भी देखनेमें न आई।" सिर्फ कुछ देहधारी ही थे । उस पुरुषको शंका हुई कि ये मेरी निवृत्ति के लिये आये हैं। वायु, अग्नि, पानी और भूमि इनमेंसे कोई क्यों नहीं आया ! (नेपथ्य ) वे सुखका विचार तक भी नहीं कर सकते । वे बिचारे दुःखसे पराधीन हैं। द्वि-इन्द्रिय जीव क्यों नहीं आये ! (नेपथ्य ) इसका भी यही कारण है । ज़रा आँख उठाकर देखो तो सही। उन बिचारोंको कितना अधिक दुःख है। उनका कंपन, उनकी थरथराहट, पराधीनता इत्यादि देखे नहीं जाते । वे बहुत ही अधिक दुःखी हैं। । नेपथ्य ) इसी आँखसे अब तुम समस्त जगत् देख लो। फिर दूसरी बात करो। अच्छी बात है । दर्शन हुआ, आनंद पाया, परन्तु पीछेसे खेद उत्पन्न हुआ। (नेपथ्य ) अब खेद क्यों करते हो ! मुझे जो कुछ दिखाई दिया क्या वह ठीक था ! "हाँ" यदि ठीक था तो फिर चक्रवती आदि दुःखी क्यों दिखाई देते हैं ! "जो दुःखी होते हैं वे दुःखी, और जो सुखी होते हैं वे सुखी दिखाई देते हैं।" तो क्या चक्रवर्ती दुःखी नहीं है ? " जैसा देखो वैसा मानो । यदि विशेष देखना हो तो चलो मेरे साथ ।" चक्रवर्तीके अंतःकरणमें प्रवेश किया। अंतःकरण देखते ही मुझे मालूम हुआ कि मैंने पहिले जो देखा था वही ठीक था। उसका अंत:करण बहुत दुःखी था । वह अनंत प्रकारके भयोंसे थरथर काँप रहा था । काल आयुष्यकी डोरीको निगल रहा था। हाव-माँसमें उसकी वृत्ति थी। ककरोंमें उसकी प्रीति थी। क्रोध और मानका वह उपासक था। बहुत दुःख ।
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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