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________________ १२ श्रीमद् राजचन्द्र पत्रांक पृष्ठ पत्रक १९३ दशाकी निस्पृहता २४२ | २२५ यम नियम संजम आप कियो (कविता) २६१ पराभक्तिकी अन्तिम हद "२४३ | २२६ जडभावे जड परिणमे (कविता) २६१-२ कुटुम्बके प्रति लेहरहित भाव २४४ *२२६ (३) आत्माकी नित्यता २६२ १९४ वासनाके उपशमनका सर्वोत्तम उपाय २४४ | २२७ जिनवर कहे छ शान तेने (कविता) २६३-४ १९५ सत्संगका परिचय २४४-५ २२७ (२) दृष्टिविष २६४ १९६ ईश्वरेच्छा न होनेसे तृणके दो टुकडे करने २२८ प्रभोत्तर २६४ की भी असमर्थता २४५ | २२९ अनुभवशानसे निस्तारा २६४ १९७ कबीर और नरसी मेहताकी अलौकिक २३० एक ही पदार्थका परिचय २६५ निस्पृह भक्ति २४५ / २३१ मुमुक्षुकी दृष्टि २६५ १९८ मायाकी प्रबलताका विचार . २४६ / २३२ कलियुगकी प्रबलता २६५ १९९ जम्बूस्वामीका दृष्टांत २४६ २३३ सत्की सत्से उत्पत्ति २०. उच्च दशाकी समीपता २४७ २३४ हरि इच्छाको कैसे सुखदायक माने २६५-६ २.१ इश्वरेच्छानुसार जो हो, उसे होने देना ૨૪૦ | २३५ प्रचलित मतभेदोंकी बातसे मृत्युसे २०२ परमार्थमें विशेष उपयोगी बातें। २४७ अधिक वेदना २६६ २०३ कालकी कठिनता २४८२३६ भागवतका वाक्य २६६ २०४ इश्वरेच्छानुसार चलना श्रेयस्कर है। २४८ | २३७ मत-मतांतरमें मध्यस्थ रहना २६६ २०५ ब्राझी वेदना २४८ २३८ मनकी सरस्वरूपमें स्थिरता २६६ २०६ परिषहोंको शांत चित्तसे सहन करना २४९ | २३९ कालकी कठिनता २६७ २०७ अथाह वेदना धर्मसंबंध और मोक्षसंबंध अचि २०८ पूर्णकाम हरिका स्वरूप २४. परसमय आर स्वसमय २६७ २०९ कामकी अव्यवस्था २४१ प्रभोके उत्तर २६८ चित्तकी निरंकुश दशा २४२ काल क्या खाता है। २६९ हरिको सर्वसमर्पणता २५१२४३ प्रगट-मार्ग न कहेंगे २६९-७० २१० 'प्रबोधशतक' २५१ २४४ आत्मवृत्ति २७. २११ सत्संग मोक्षका परम साधन २५१ २४५ हरि इच्छा २७० २१२ हरि इच्छा बलवान २५२*२४६ किसी वाचनकी जरूरत नहीं २१३ हरि इच्छासे जीना २५२ | २४७ आत्मा ब्रह्मसमाधि है २१४ सत्संगके माहाल्यवाली पुस्तकोंका पठन २५३ | २४८ हरिकी अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता २७१ २१५ शुचिका कारण व्यवस्थित मन २५३ | २४९ स्वच्छंद बड़ा दोष २७१ २१६ मुमुक्षुता क्या है २५३ | २५० मनको जीतनेकी कसौटी २७२ २१७ अत्यन्त उन्मत्त दशा २५४-५ | २५१ आचारांगका वचन २७१ संतोषजनक उदासीनताका अभाव २५५/२५२ केवलदर्शनसंबंधी शंका २७२ २१८ जीवका स्वभावसे दूषितपना २५६ २५३ सत्संगका अभाव २७२ २१९ श्रीसद्गुरुकृपामाहात्म्य (कविता) - २५६ २५४ सब शास्त्रोकी रचनाका लक्ष २७१ २२.चित्तका हरिमय रहना २५७२५५ सम्यग्ज्ञान किसे कहते हैं २७३ २२१ चमत्कार बताना योगीका लक्षण नहीं २५७ २५६ संसारमें रहना कब योग्य है २७३ २२२ निवृत्तिकी इच्छा २५७ २५ वाँ वर्ष २२३ कालकी दु:षमता २५० |२५७ परमार्थ मौन २७४ तीन प्रकारके जीव २५८/२५८ भगवानको सर्वसमर्पणता २७४ २२४ श्रीसद्गुरुमक्ति रहस्य (कविता) २५९-६० | २५९ सहजसमाधि २७४-५ २७.
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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