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________________ पत्रांक १३६ अपूर्व आनन्द * १३६ (२) जीवका अस्तित्व नित्यत्व आदि १३७ उदासीनता अध्यात्मकी जननी है। १३८ बीजा साधन बहु कर्यो ( कविता ) १३९ जहाँ उपयोग वहाँ धर्म १४० नित्यस्मृति १४१ सहज प्रकृति १४२ आत्मगम्य बातें १४३ महावीरको जगत्का शान १४४ सर्वगुणसम्पन्न भगवान् में दोष मोक्षकी आवश्यकता - १४५ मंगलरूप वाक्य १४६ मुक्तानन्दजीका वाक्य २४ वाँ वर्ष १४७ आत्मज्ञान पा लिया उन्मत्त दशा * १४७ (२) महान् पुरुषोंके गुण * १४७ (३) वीतराग दर्शन * १४८ उपशम भाव * १४८ (२) दशा क्यों घट गई १४९ आत्मविषयक भ्रांति होनेका कारण १५० हरिकृपा १५१ दूसरोंका अपूर्व हित १५२ संतकी शरण में जा . १५५ पत्र प्रश्न आदिका बंधनरूप होना १५६ स्पष्टरूपसे धर्मोपदेश देनेकी अयोग्यता १५७ ' इस कालमें मोक्ष नहीं' इसका स्याद्वादपूर्वक विवेचन १५८ तीनों कालकी समानता १५९ कालकी दुःषमता १६० आत्माको छुड़ानेके लिये सब कुछ . १६१ अन्तिम स्वरूपकी समझ संगहीन होने के लिये वनवास भोजा भगत, निरांत कोली आदिका परम योगीपना विषय-सूची पृष्ठ २११-२ २१२ १५३ अद्भुतदशा १५४ जो छूटनेके लिये ही जीता है वह बंधन में नहीं आता २१२ २१२ | १६६ मुमुक्षुओंके दासत्वकी प्रियता २१३ १६७ मार्गकी सरलता २१३ १६८ अनंतकालसे जीवका परिभ्रमण २१३ | १६९ जीवके दो बंधन २१४ १७० एकांतवाससे पड़देका दूर होना २१४- ५ | १७१ जीवको सत्की अप्राप्ति | पत्रांक १६४ हरिजनकी संगतिका अभाव १६५ हमारी वृत्ति जो करना चाहती है वह एक निष्कारण परमार्थ है। २१५ १७२ मनुष्यत्वकी सफलता के लिये जीना २१५ | १७३ वचनावली भागवत प्रेमभक्तिका वर्णन १७४ भागवतकी आख्यायिका भक्ति सर्वोपरि मार्ग २१५ २१६ २१७ | * १७४ (२) " कोई ब्रह्मरसना भोगी " २१८-९ | १७५ संतके अद्भुत मार्गका प्रदर्शन २१८-९ १७६ शानीको सर्वत्र मोक्ष २१९-२० १७७ मौन रहनेका कारण परमात्माकी इच्छा १७८ ईश्वरेच्छाकी सम्मति २२० २२० १७९ वैराग्यवर्धक वचनोंका अध्ययन २२०-१ १८० शानी की वाणीकी नयमें उदासीनता नयके आग्रह विषम फलकी प्राप्ति २२१ २२१ | *१८० (२) नय आदिका लक्ष सच्चिदानन्द १०१ सत् दूर नहीं २२१ २२१ १८२ धर्म- जीवोंका दासस्व २२२ २२३ २२३ २२६ . १६२ बम्बई उपाधिका शोभास्थान २२६ . १६३ "अलख नाम धुन लगी गगनमै” (कविता) २२६ ་་་ १८२ सजीवन मूर्तिकी पहिचान १८४ सत्पुरुष ही शरण है ११ पृष्ठ २२६ २२७ २२७ २२७-८ - २२८ २२८ २२९ २२९ २३० २३०-१ २३०-१ २३१-२ २३३ २३३ २३३ २३३ २३४ २३४ २३४ २३५ २३५ २३६ २३६ २३६ २३७ २३८ इस कालमें मोक्ष हो सकता है २३८ २३८ परमात्मा और सत्पुरुष अभिन्नता ईश्वरीय इच्छा २३९ २३९ २३९-४० २२३ -४ | १८५ जगत्के प्रति परम उदासीनभाव २२४ | १८६ वनवासके संबंध में २२४१८७ सत् सबका अधिष्ठान २२५ २२५ २४० २४० महात्माओं का लक्ष एक सत् ही है मोक्षकी व्याख्या २४१ २२५ - ६ | १०८ भागवत में प्रेमभक्तिका वर्णन २४१ १८९ ज्योतिष आदिका कल्पितपना २४१ १९० ईश्वरका अनुग्रह २४१ १९१ अधिष्ठानकी व्याख्या ૨૪૨ १९२ पंचमकालमै सत्संग और सत्शास्त्र की दुर्लभता २४२
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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