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________________ (२६) ऋषिमंमलटत्ति-पूर्वाई. ष्फल न थाय एटला हेतुथी पोताना खरा स्वरुपनी एक आंगली तेने वतावी, जेधी जरते अहा महोत्सव करयो. अने ते "२६ महोत्सव" एवा नामथी. प्रसिह थयो. पठी लरतराजाए श्रावकोने कां के, “ तमारे आरंन मूकी दश्ने निरंतर म्हारे घेर नोजन करवू अने सवारमा एम कहेवू के, “तमे जीताएला गे, नय वर्ते जे; माटे (आत्मगुणने) न हो न हणो." जरतराजानां आवां वचन सांजली सर्वे श्रावको एज प्रमाणे करवा लाग्या, को एक दिवस ते श्रावकोनां एवां वचन सांजली नरतराजा विचार करवा लाग्यो के “हुंकषायोथी जीताएलोबुं अने आ संसारने विषे नय वर्ते." ___ एक दिवस रसोइए आवीने भरतराजाने विनंती करीने का के, "हे स्वामिन् ! आलस्यवाला घणा माणसो अहिं निरंतर नोजन करवा आवे . तो पी अमो एटली बधी रसोशी रीते करी शकीए.” रसोइयानां आवां वचन सान्नली नरत राजा लोजन करवा आवेला श्रावकोने या प्रमाणे पूबवा लाग्यो. “ तमे शुं शुं जाणो बगे? "केटलाके का. “हे नरेश्वर ! अमे पांच अणुव्रत जागीए वीए." एज प्रमाणे केटलाके त्रण गुणव्रत अने केटलाके चार शिक्षाबत जाणवायूँ कह्यु. ए नपरथी नरतराजाए तेननी नलखागने माटे तेमनी गतिने विषे पांच, त्रण अने चार एम अनुक्रमे काकिणीरत्नवमे रेखान करी. बाकीना के जेन का नहोता जागता तेनने तेणे वहार काढी मूक्या. या प्रमाणे लरतराजा ब ब महिने परीक्षा करवा लाग्या, अनुक्रमे काकिणी रत्नना चिह्नने स्थानके जनो यइ. नरत चक्रवर्तीना वंशने विषे 'पण आदित्ययशादि राजानए सोनानी, रुपानी अने सूतर विगेरेनी जनो धारण करवा मांमी. आ धर्म दीर्घकाल सुधी अर्थात् शीतलनाथ ती'थैकर थया त्यां सुधी प्रवयो. त्यार पठी काकिणी रत्नना चिह्नने धारण करनारा श्रावको मिथ्यात्वपणाने पामीने ब्राह्मणो थया के, जेन मिथ्यात्वना नपदेशयी लोकने विषे गुरुन श्रइ पम्या.पठी सर्व लोको पण तेमने दान आ'पवा लाग्या.श्री नरत सजाए श्रावकोना हितने माटे जिनेश्वरना स्तोत्र रूप श्रावक धर्मनुं निरुपण करनारा वेदो बनाव्या; परंतु ते कालयोगे सुलसादिकथी अनार्यपणुं पाम्या अने ते अवसरे तो सर्व प्रकारे साधुननो विछेद थयो. एक दिवम नरतराजाए प्रन्नुने पूज्यु. “हे प्रलो! आ सन्नामां को एवो
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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