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________________ श्री पद्म बलदेव चरित्र. (१७) -- , ए प्रमाणे शत्रुनने कय करवाथी वृद्धि पाम्युं ने बल जेमनुं एवा महा -तेजवंत लक्ष्मण सेनावंत एवा विराध सहित जेटलामां राम तरफ जवा लाग्या तेटलामां मार्गने विषे तेमनुं वामनेत्र फरकवा लाग्यु; तेथी ते सीता अने रामर्नु अकुशल मानता खेद करवा लाग्या. पठी त्यां आश्रमे आवीने जोडे तो तेमणे वनमां वृदोनी घटामां सीताना वियोगयी शून्य चित्तवाला रामने जोया. त्यां राम सीताना वियोगथी वारंवार विलाप करता हता के, “हे वनदेवीयो! तमे ऊट प्रसन्न अ मने सीतानी वात कहो. हे पदीयो ! तमे पण दूर विहार करवा जागे, माटे जो म्हारी हरण थयेली प्रियाने कोइ स्थानके दीठी होय तो मने कहो.” वली सीताना वियोगथी अत्यंत पीमित थयेसा राम दीर्घकाल पर्यंत निश्वास नाखीने वारंवार कहेता हता के, " अरे निखंङ प्राणो ! तमे तुरत केम चाल्या जता.नथी ? मने एक तरफथी सीताना वियोगरूप अग्नि संताप करे अने बीजी तरफयी वैरीयोना संकटश्री मुक्त 'अयेला लक्ष्मण इजु सुधी आव्या नहि ए पीमा करे . मने जेभने लीधे गृ. हवासथी आ वनवास सुखकारी हतो; ते जानकी अने बंधु लक्ष्मण बन्ने जणा प्राजे उर्खन दर्शनवाला यश् पमया ने.” आम राम विलाप करता हता एवामां “हे बंधो ! हुं आ रह्यो तमारी आगलज. तमारी आवी अवस्था केम थ?” एम कहीने आंसुश्री व्याप्त नेत्रवाला लक्ष्मणे रामने नमस्कार कस्यो. परी दुःखरूप महा समुश्मां प्राप्त अयेला सुखरूप बेटने पामी रामे ल. क्ष्मणने कह्यु. “हे वत्स लक्ष्मण ! तमे शत्रुनने जीती सुखथी आव्या गेकनी?" पड़ी जानकीना वियोगने जाणता एवा लक्ष्मणे रामनें कडं. "हुँ धारुंटुं के, जेणे सिंहनो शब्द कस्यो हतो तेणेज सीतार्नु हरण करयुं बे; परंतु ते हरण करनार विद्याधर, माणस, राक्षस, सुर के असुर गमे ते हो, परंतु हुं तेनुं मस्तक आ म्हारा खमुवती बेदी नाखीश." पठी विराधनां वचनयी सीताने शोधवा माटे अनेक विद्याधरो चारे दिशामां दोमया. तेनए सर्व स्थानके सीतानी बहु शोध करी; परंतु को ठेकाणेश्री जनकपुत्री मख्यां नदि; तेथी तेन नाम चित्तवाला अश् पाग श्राव्या. लक्ष्मणे रामने कडं."हे ना! में एवी प्रतिज्ञा लीधी के, "आ विराधने पाताललंकाना राज्यने विषे स्थापवो.” विराधे पण ते बन्ने नाश्नने कडं. “हे प्रनो! आप त्यां आवी मने
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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