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________________ (१४७) ऋषिमंमलत्ति-पूर्वाई. नद्यानपालके नगरमां वीरप्रन्नुना आगमननी वधामणी आपी; तेथी नगरना सर्व लोक तेमने वंदन करवा चाल्या. सुदर्शन शेठ पण गया. ते अवसरे प्रनुए सन्नामां सर्व लोकना हितने माटे एक समयथी आरंनीने दश सागरोपम सुधीना कालना प्रमाणनुं वर्णन करा. ते सांजली विस्मयवंत श्रयेला सुदर्शन शेठे पू. व्युं के, "हे स्वामिन् ! जेनने आ सागरोपम काल को गतिमां आव्यो होय तो ते शी रीते कय थाय ? " प्रनुए कह्यु. “पूर्वे तें एटलो काल अनुन्नव्यो . तुं पूर्व नवने विषे ब्रह्म देवलोकमां दश सागरोपमना आयुष्यवालो महाबलनो आत्मा देवता हतो.” प्रन्नुना आवां वचन सनिली तत्काल पूर्वन्नवना जातिस्मरणने लीधे वैराग्यवंत श्रयेला सुदर्शन शेठे प्रन्नु पाले चारित्र लीधुं. पठी पोताना कार्यने जागनारा सुदर्शन मुनिये अनुक्रमे चौदपूर्वनो अन्यास करी केवलज्ञान मेलवी मुक्तिपद अंगीकार करयु. - - (या ग्रंथकर्ता श्री शुनवाईन गणी कहे ने के,) हे नव्यजनो ! में पापने नाश करनारुं आ महाबलनुं चरित्र पोताना अने परना नपकारने माटे संदेपे कडं ठे; परंतु विस्तारे जागवानी श्चावाला विज्ञान पुरुषोए ते चरित्र पांचमा अंगथी (नगवती सूत्रथी) जागी लेवु. .. ॥ इति श्री महाबल चरित्रम् ॥ ॥अथ अष्ट बलदेव चरित्राणि ॥ . पयरय मिबरजसिरिं; उनित्र गहिअवए अयलपमुहे॥ अवि बलदेव रिसी, नमामि निवागमणुपत्ते ॥१॥ अर्थ-पगने विपे चोटेली रजनी पेठे राज्यलक्ष्मीने त्यजी दश्चारित्रअंगीकार करी मोक्षपद प्राप्त करनारा अचल विगेरे (अचल, विजय, नई, सुन्न, सुदर्शन, आनंद, नंदन, अने पद्म) आठ वलदेवमुनियोने नमस्कार करूं तुं. १२ __ ए गायानो विशेपार्थ तो चरित्रोत्री जाणी लेवो. वली अचल चरित्र श्री शांतिनायना चरित्रमा आवी गयुं ठे, माटे ते त्यांथी जाणी लेवें अने विजय चरित्र अदियां संकेप मात्रयी कहे . ॥श्री विजय वलदेव चरित्रम् ॥ श्रा नरतक्षेत्रना पश्चिम महासमुन्ने कोठे लक्ष्मीने क्रीमा करवानांम: ovoNov0ov
SR No.010762
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Mythology, & Literature
File Size32 MB
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