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________________ । वैष्णवता और भारतवर्ष '.. . ८५ न होने से शील, नम्रता आदि उन में कुछ नहीं होती । दूसरे या तो वे अति .. रूखे क्रोधी होते हैं या अतिविलासलालस हा-होकर स्त्रियों की भाँति सदा 'दर्प ग ही देखा करते हैं । अब वह सब स्वभाव उनको छोड़ देना चाहिये क्योंकि इस उन्नीसवीं शतान्दी में वह श्रद्वाजाड्य अव नहीं बाकी है। अब कुकर्मी गुरू का भी चरणामृन लिया जाय वह दिन छप्पर पर गये। जितने बूढ़े लोग अभी तक जीते हैं उन्हीं से शील-स कोच से प्राचीन धर्म इतना भी चल रहा है बीस, पचीस वर्ष पीछे फिर कुछ नहीं है । अव तो गुरू गोसाई का चरित्र ऐसा होना चाहिये कि जिसको देख सुन कर लोगों में श्रद्धा सें स्वयं चित्त श्राकृष्ठ हो । स्त्रीजनों का मन्दिरों से सहवास निवृत्त किया जाय । केवल इतना ही नहीं भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र की केलि कथा जो अति रहस्य होने पर भो बहुत परिमाण से जगत् में प्रचलित है वह केवल अन्तरंग उपासकों पर छोड़ दी जाय उनके महात्म्य मत विशद चरित्र का महत्व यथार्थ रूप से व्याख्या करके सव को समझाया जाय । रास क्या है. गोपो कौन है, यह सब · । रूपक अलकार स्पष्ट करके श्रुति सम्मत उनका ज्ञान वैराग्य भक्ति-बोधक अर्थ ‘किया जाय । यह भी देवी जीभ से हम डरते-डरते कहते हैं कि व्रत, स्नान आदि . भी वही तकं रहे जहाँ तक शरीर को अति कष्ट न हो। जिस उत्तम उदाहरण के द्वारा स्थापक आचार्यगण ने आत्ममुख विसर्जन करके भक्ति सुधा से । लोगो का प्लावित कर दिया था उसी उदाहरण से अब भी गुरु लोग धर्म प्रचार करें । वाह्य अाग्रहों को छोड़कर केवल आन्तरिक उन्नत प्रेममयी भक्ति का प्रचार करें। देखें कि दिगदिगन्त से हरिनाम की कैसी ध्वनि उठती है और विधर्मोण भी इमो सिर झुकाते हैं, कि नहीं। सिक्ख कवीरपन्थी आदि अनेक दल के हिन्दूगण भी सब आप से आप बैर छोड़कर इस उन्नत समाज में मिल जाते है कि नहीं। जो कोई कहै कि यह तुम कैसे कहते हो कि वैष्ण व मत ही भारतवर्ष का प्रकृत मत है तो उसके उत्तर में हम स्पष्ट कहेंगे कि वैष्णव मत ही भारत वर्ष का मत है और वह भारतवर्ष की हड्डी लहू में मिल गया है । इसके अनेक प्रमाण हैं, क्रम से सुनियेः -पहले तो कबीर, दादू सिक्ख-वाउड आदि जितने
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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