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________________ ५२ [हिन्दी गद्य-निर्माण मिट जाती हैं। पर रे मूढ़ ! याद रख, कि आदमी के चित्त मे ऐसा सोच विचार कोई नहीं पाता जो जगकर्ता प्राण दाता परमेश्वर के सामने प्रत्यक्ष नहीं हो जाता । ये चिमगादड़ और भुनगे और सॉप बिच्छ्र और कीड़े-मकोड़े जो तुझे दिखलाई देते हैं वे सब काम, क्रोध, लाभ, मत्सर, अभिमान, मद, ईर्षा के संकल्प-विकल्प हैं जो दिन-रात तेरे अतःकरण मे उठा किए और. इन्हीं चिमगादड़ और भुनगों · और सॉप विच्छू और कीड़े-मकोड़ों की तरह तेरे हृदय,के आकाश में उड़ते रहे । क्या कभी तेरे जी में किसी राजा की ओर से कुछ द्वष नहीं रहा या उसके मुल्क माल पर लोभ नहीं श्राया या अपनी बड़ाई का अभिमान नहीं हुया या दूसरे की सुन्दर स्त्री देखकर उस पर दिल न चला?" राजा ने एक लम्बी ठंडी सांस ली और अत्यन्त निराश होके यह बात कही कि इस संसार में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो कह सके कि मेरा हृदय शुद्ध और मन में कुछ भी पाय नहीं। इस संसार से निष्पाप रहना वड़ा ही कठिन है । जो पुण्य करना चाहते हैं उनमें भी पाप निकल पाता है। इस ससार में पाप से रहित कोई भी नहीं ईश्वर के सामने पवित्र पुण्यात्मा कोई भी नहीं। सारा मन्दिर वरन् सारी धरती-अाकाश गूंज उठा "कोई भी नहीं, कोई भी नहीं।" सत्य ने जो आँख उठाकर उस मन्दिर की एक दीवार की ओर देखा तो उसी दम संगमर्मर से आईना बन गया। उसने राजा से कहा कि अब टुक इस पाइने का भी तमाशा देख और जो कत्तव्य , कर्मों के न करने से तुझे पाप लगे हैं उनका भी हिसाब ले । राजा. उस श्राइने में क्या देखता है कि जिस प्रकार बरसात की बढ़ी हुई , किसी नदी में जल के प्रवाह वहे जाते हैं उसी प्रकार अनिगिनत सूरतें एक ओर निकलती और दूसरी ओर अलोप होती चली जाती हैं । कभी तो राजा को वे सब भूखे 'और नगे इस पाईने मे दिखाई देते जिन्हें राजा खाने-पहनने को दे सकता था पर न देकर दान का रुपया उन्हीं हट्ट खट्ट मुसंड खाते पीतों को देता रहा, जो उसकी खुशामद करते थे या किसी की सिफारिश ले पाते थे या इसके कारदारों को घूस देकर मिला लेते थे या सवारी के समय मांगते
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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