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________________ ___ राजा भोज का सपना ]. प्रसन्न करने को, क्या रुपया बचाने अथवा अधिक लाभ पाने को और दूसरे का देश अपने हाथ में लाने अथवा किसी बराबर वाले से अपना मतलब निकालने और दुश्मनों को नीचा दिखलाने को तैने कितना झूठ बोला है।। अपने ऐब छिपाने और दूसरे की आँखों में अच्छा मालूम होने अथवा झूठी तारीफ पाने के लिये तैने कैसी-कैसी शेखियो होकी हैं और अपने को औरों से अच्छा और औरों को अपने से बुरा दिखलाने को कहाँ तक बाते बनाई हैं तो क्या अब कुछ भी याद न रहा, बिलकुल एक बारगी भूल गया १ पर वहाँ तो वे तेरे मुँह से निकलते ही बही में दर्ज हुई । तू इन दागों के गिनने मे असमर्थ है पर उस घट-घट निवासी अनन्त अविनासी को एक एक बात . जो तेरे मुंह से निकली है याद है और याद रहेगी। उसके निकट भूत और भविष्य वर्तमान-सा है। ... भोज ने सिर उठाया पर उसी दबी जबान से इतना मुंह से और निकला कि दाग तो दाग पर ये हाथ-हाथ भर के गढ़े क्योंकर पड़ गए, सोने-चांदी में मोर्चा लगकर ये ईट-पत्थर कहाँ से दिखलाई देने लगे ? सत्य ने कहा कि "राजा क्या तूने कभी किसी को कोई लगती हुई बात नहीं कही अथवा बोली ठोली नहीं मारी ? अरे नादान, यह बोलो ठोली तो गोली से अधिक काम कर जाती है, तू तो इन गढ़ों ही को देखकर रोता है पर तेरे ताने तो बहुतों की छातियों से पार हो गए । जब अहंकार का मोर्चा लगा तो फिर यह देखलावे का मुलम्मा कब तक ठहर सकता है ! स्वार्थ और अश्रद्धा का ईट पत्थर प्रकट हो गया।" राजा को इस अर्से में चिमगादड़ों ने बहुत तंग कर रखा था ! मारे बू के सिर फटा जाता था. भुनंगों और, पतंगों से सारा मकान भर गया था, बीच-बीच मे पंखवाले सॉप और विच्छू भी दिखलाई देते थे । राजा घबराकर चिल्ला उठा कि यहाँ मैं किस आफत में पड़ा, इन कमबख्तों को यहाँ किसने आने दिया ? सत्य बोला “राजा सिवाय तेरे इनको यहाँ कौन आने देगा ? तू ही तो इन सब को लाया। ये सब - तेरे मन की बुरी वासनाएँ हैं । तूने समझा था कि जैसे समुद्र में लहरें उठा = और मिटा करती हूँ उसी तरह मनुष्य के मन में भी संकल्प की मौजे उठकर
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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