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________________ साहित्य और सौंदर्य-दर्शन ] २२७ . में सौन्दर्य ही एक ऐसी चीज है जो हमको सदैव आनन्द देने वाली है । जब हम कोई सुन्दर चीज देखते हैं अथवा कोई सुन्दर अावाज सुनते हैं, तो हमारा चित्त उसकी ओर आकर्षित होता है और उससे. हमको एक अपूर्व आनन्द होता है । हृदय में एक विलक्षण आहाद की लहरें उठने लगती हैं ? एक प्रकार का आनन्दमय कम्पन होता है । कवि और दार्शनिकों ने इसको बहुत दूर तक देखा । अभिज्ञान शाकुन्तल में महाकवि कालिदास ने एक ' जगह राजा दुष्यन्त की मनोदशा श वर्णन करते हुए कहा है : रम्याणि वीक्ष्य मधुरांश्च निशम्य शन्दान् पयुत्सुको भवति यत्सुखितोऽपि जन्तुः। तच्चेतसा स्मरति नूनमबोधपूर्वम् भावस्थिराणि जननान्तरसौहृदानि ॥' कोई सुन्दर वस्तु देखकर अथवा सुन्दर शन्द सुनकर सुखी प्राणी भी अानन्दोत्सुक हो उठते हैं । इसका कारण क्या है ! जान पड़ता है कि पूर्वजन्म का उनका कोई प्रेम चला पाता है; जो जमान्तर के कारण से कुछ विस्मृत सा हो गया था; परन्तु उसका, भाव हृदय मे अभी बना हुआ था; और अब उसी हार्दिक भाव में जव वाह्य सौन्दर्य की लहरें आकर टकराई, तब वह प्रम फिर जागृत होकर एक प्रकार का आनन्द उत्पन्न हुया-उत्सुकता पैदा हुई । गोस्वामी तुलसीदास जी ने फुलवाड़ी में सीता जी का दर्शन करने के बाद श्री रामचन्द्र जी की मनोदशा का जो वर्णन किया है, उसमें भी इसी प्रकार के सौंदर्य-दर्शन की भावना है । फुलवाड़ी में सीता जी को देखने के पहिले श्रीरामचंद जी को आभूषणों की सिर्फ मधुर ध्वनि सुनाई दी थी। उसी से उनकी क्या दशा हो गई कङ्कन किङ्किनि नूपुर धुनि सुनि । कहत लषन सन राम हृदय गुनि ॥ मानहुँ सदन दुन्दुभी दीन्ही । मनसा विश्व-विजय कह कीन्हीं ॥
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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