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________________ मुण्डमाल ] २१५ चूड़ावतजी हाथ में लगाम लिये ही, बादल के जाल से निकले हुए ', उस पूर्ण चन्द्र पर टकटकी लगाये खड़े हैं । जालीदार खिड़की से छन-छनकर श्रानेवाली चांद की चटकीली चांदनी ने चूड़ावत चकोर को श्रापे से बाहर कर दिया है ! हाथ का लगाम हाथ ही में है, मन का लगाम खिड़की में है ! * नये प्रेम-पाश को प्रबल वन्धन प्रतिज्ञा-पालन का पुराना वन्धन ढीला कर रहा है ! चूड़ावतजी का चित्त चञ्चल हो चला । वे चटपट चन्द्रभवन की ओर चल पड़े। वे यद्यपि चिन्ता में चूर हैं; पर चन्द्र दर्शन की चोखी चाट लेग रही है । वे सङ्गमर्मरी सीढ़ियों के सहारे चन्द्र-भवन पर चढ़ चुके, पर जीभ का जकड़ जाना जी को जला रहा है। । हृदय-हारिणी हाड़ी रानी भी, हिम्मत की हद करके, हल्की आवाज से, बोली-“प्राणनाथ ! मन मलीन क्यों है ? मुखारविन्द मुआया क्यों है ? न.तन में तेज ही देखती हूँ, न शरीर में शान्ति ही ! ऐसा क्यों ? भला, उत्साह की जगह उद्वेग का क्या काम है ? उमंग में उदासीनता कहाँ से चू पड़ी ? क्या कुछ शोक-संवाद सुना है ? जब कि सभी सीमान्त-सूरमा संग्राम के लिए, सज-धज कर आप ही की आज्ञा की आशा में अटके हुए हैं, तब , क्या कारण है कि आप व्यर्थ व्याकुल हो उठे हैं १ उदयपुर के बाजे गाजे के, तुमुल शब्द से दिगदिगन्त डोल रहा है । वीरों की हुँकार से कायरों के कलेजे भी कड़े हो रहे हैं। भला ऐसे अवसर पर आपका चेहरा क्यों उतरा हुया है। लड़ाई की ललकार सुनकर लगड़े लूले को भी लड़ने भिड़ने की लालसा लग जाती है, फिर आप तो क्षात्र-तेज से भरे हुए क्षत्रिय हैं। प्राणनाथ ! शूरों को शिथिलता नहीं शोभती। क्षत्रिय का छोटा-मोटा छोकरा भी क्षण भर में शत्रु ओं को छील-काल कर छुट्टी कर देता है; परन्तु आप प्रसिद्ध • पराक्रमी होकर क्यों पस्त पड़ गये। चूड़ावत जी चन्द्रमा मे चपला की सी चमक-दमक देख, चकित होकर, वोले-प्राणप्यारी ! रूपनगर के राठौर वंश की राजकुमारी को दिल्ली का वादशाह बलात्कार से न्याहने आ रहा है । इसके पहले ही वह राज कन्या हमारे माननीय राणा वहादुर को वर चुकी है । कल पो फूटते
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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