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________________ २१४. हिन्दी-गद्य-निर्माण दिशाएँ सरस-शन्द-मयी हो रही हैं। बड़े अभिमान से फहराती हुई विनयपताका राजपूतों की.कीर्तिलता सी लहराती है ! स्वच्छ आकाश के दर्पल में अपने मनोहर मुखड़े निहारनेवाले महलों की ऊँची ऊँची अटारियों पर चारों श्रोर सुन्दरी सुहागिनियाँ और कुमारी कन्याएँ भर भर अंचल फूल लिए खड़ी हैं, सूरज की चमकीली किरणों की उज्ज्वल धारा से धोए हुए आकाश में चुभने वाले कलश, महलों के मुँडेरों पर मुस्कुरा रहे हैं। बन्दीबन्द विशद विरुदावली बखानने में व्यस्त हैं। . महाराणा राजसिंह के समर्थ सरदार चूड़ावत जी आज औरंगजेब का दर्प दलन करने और उसके अन्धाधुन्ध अन्धेर का उचित उत्तर देने जाने वाले हैं । यद्यपि उनकी अवस्था अभी अठारह वर्षों से अधिक नहीं है, तथापि जङ्गी जोश के मारे वे इतने फूल गये हैं कि, कवच में नहीं अटते । उनके हृदय मे सामरिक उत्तेजना की लहर लहरा रही है । घोड़े पर सवार होने के लिये वे ज्यों ही हाथ मे लगाम थामकर उचकना चाहते हैं, त्यों ही अनायास उनकी दृष्टि सामनेवाले महल की झंझरीदार खिड़की पर, जहाँ उनकी नवोढ़ा पत्नी खड़ी है, जा पड़ती है। । .. हाड़ा वंश की सुलक्षणा, सुशीला और सुकुमारी कन्या से अापका' व्याह हुए दो-चार दिनों से अधिक नहीं हुआ होगा। अभी नवोढ़ा रानी के हाथ का कंकण हाथ ही की शोभा बढ़ा रहा है ! अभी कजरारी ऑखें अपने ही रङ्ग में रँगी हुई हैं । पीत पुनीत चुनरी भी अभी धूमिल नहीं होने पाई है । सोहाग का सिन्दूर दुहरायो भी नहीं गया है । फूलों की सेज छोड़कर और कहीं गहनों की झनकार भी नहीं सुन पड़ी है। पायल की रुन-मुन ने महल के एक कोने मे ही वीन बजायी है। अभी घने पल्लवों की आड़ में ही कोयल कुहकती है। अभी कमल-सरीखे कोमल हाथ पूजनीय चरणों पर । चन्दन ही भर चढ़ा पाये हैं। अभी संकोच के सुनहरे सीकड़ मे बधे हुए नेत्र लाज ही के लोभ में पड़े हुए हैं। अभी चांद वादल ही के अन्दर छिपा हुआ . था, किन्तु नहीं अाज तो उदयपुर की उदित विदित शोभा देखने के लिये घन पटल में से अभी अभी वह प्रकट हुआ है।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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