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________________ साहित्योपासक] १८. आदर करते है । मैं तो मिल का मजूर हूँ। तुमने किसी मजूर को हवा खाते देखा है। जिन्हें भोजन की कमी नहीं,उन्हीं की हवा को जरूरत है । जिनको रोटियों के लाले हैं, वे हवा खाने नहीं जाते । फिर स्वास्थ्य और जीवन-वृद्धि की जरूरत उन लागों को है, जिनके जीवन में अानन्द और स्वाद है । मेरे ., , लिये तो जीवन भार है । इस भार को सिर पर कुछ दिन और बनाये रहने की अभिलाषा मुझे नहीं है।' - सुमित्रा ये निराशा में दूबे हुए शब्द सुनकर ऑबों में ऑसू भरे अन्दर चली । उसका दिल कहता था, इस तपस्वी की कीर्ति-कौमुदी एक दिन अवश्य फैलेगी, चाहे लक्ष्मी की अकृपा बनी रहे । किन्तु प्रवीण महोदय अव निराशा की उस सीमा तक पहुँच चुके थे, जहाँ से प्रतिकूल दिशा में उदय होने वाली आशामय उषा की लाली भी नहीं दिखाई देती। एक रईस के यहाँ कोई उत्सव है। उसने महाशय प्रवीण को भी ६ निमत्रित किया है । श्राज उनका मन आनन्द के घोड़े पर बैठा हुश्रा नाच रहा है । सारे दिन वह इसी कल्पना में मग्न रहे । राजा साहव किन शन्दों में उनका स्वागत करेंगे और वह किन शन्दों में उनको धन्यवाद देंगे; किन प्रसंगों पर वार्तालाप होगा, और किन महानुभावों से उनका परिचय होगा, सारे दिन वह इन्हीं कल्पनाओं का आनन्द उठाते रहे । इस अवसर के लिये उन्होंने एक कविता भी रची, जिसमें जीवन की, एक उद्यान से तुलना की थी। अपनी सारी धारणाओं की उन्होंने आज उपेक्षा कर दी। क्योंकि रईसों के मनोभावों को वह श्राघात न पहुँचा सकते थे। दोपहर ही से उन्होंने तैयारियां शुरू की। हजामत बनाई, साबुन . से नहाया, सिर में तेल डाला। मुश्किल कपड़ों की थी। मुद्दत गुजरी जब . उन्होंने एक अचकन बनवाई थी। उसकी दशा भी उन्हीं की दशा जैसी जीणं हो चुकी थी। जैसे जरा-मी सर्दी या गर्मी से उन्हें जकाम या सिरदर्द हो जाता था, उसी तरह वह अचकन भी नाजुक-मिजान थी। उसे निकाल और भाड-पोछ कर रक्खा।
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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