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________________ श्रीबाणभट्ट } १७१ की जगह “रहने दो, "बैठ जाओ" सुनना पड़े। फिर पद्य के प्रबन्ध मे सौपचास पद्यों में दस-पाँच पद्य भी अच्छे निकल आये, तो काम चल जाता है, । किसी पद्य का एक चरण भी चमत्कृत बन गया, तो शावाशी मिल जाती है, ___एक अलकार भा सारे पद्य को सजा देता है, उसी से 'पद्य बहुत बढ़िया है, * का सार्टिफिकेट मिल जाता है । भले ही तीन चरण लँगड़े हों-भरती के । चमत्कार शुन्य हों। यह आसानी गद्य में नहीं हो सकती। गद्य का एक विशेषण भी प्रबन्ध के अनुरूप न हुश्रा, एक शब्द भी अनुचित हुश्रा, एक , पद भी बेमौके बैठ गया, तो सारा मजा किरकिरा हो जाता है, सुनते ही खटकने लगता है। सफेद कपड़े का एक धन्ना भी दूर से दिखाई दे जाता है। गद्य-प्रबन्ध की एक भी भूल सारे सौष्ठव पर धूल डाल देती है, बने बनाये खेल को बिगाड़ देती है, साथ के अगले-पिछले सुन्दर शन्दविन्यास की शान को भी बट्टा लगा देती है । गद्य की शिथिलता पर परदा डालने के लिए कवि के पास कोई बहाना नहीं हो सकता। वह छन्दोभंग से बचने की आड़ में अपने ऐब को नहीं छिपा सकता। उसके सामने मैदान खुला हुआ है, जितना दम हो, , कल्पना के घोड़े दौड़ा सकता है, चुन-चुन कर बढ़िया शन्द रख सकता है, उसे पूरी स्वतन्त्रता है । वास्तव में गद्य की रचना पद्य की अपेक्षा कहीं कठिन है, इसी कारण विवेकी विद्वानों ने कहा है-'गद्यं कवीनां निकष बदति ।" अर्थात् 'गद्य-रचना काव्य-सुवर्ण के परखने की कसौटी है ।' खरी खान का सोना ही उसकी रगड़ पर चमक कर परीक्षक को लुभा सकता है । सुवर्ण में योड़ी भी मिलावट हो, तो उसका मूल्य घट जाता है-भाव गिर जाता है। ऐसी दशा में पद्य के साफ-सुथरे सुगम मार्ग को छोड़ कर गद्य के विषम दुर्गम पथ में पाँव रखना किसी साहसी पुरुष का ही काम है। जिस मार्ग में जितनी सुगमता हो, सर्वसाधारण उसे उतना ही अधिक पसन्द करते हैं. जिस रास्ते में पद-पद पर भटकने का भय और ठोकर खाने का डर हो,, उस पर चल. कर झंझट में पड़ना कौन -पसन्द करेगा ? गद्य-मार्ग के अवरोध की दुर्गमता- विषमता ही प्रधान कारण है। इने-गिने दो-चार ही कवि इस पर चलने का साहस कर सके हैं। उनमें भी सफलता केवल बाणभट्ट को ही
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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