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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण १४८ तक विस्तर पर पड़े-पड़े मनुष्य प्रभात का पालस्य-सुख मनाता है। बिस्तर से उठकर जरा बाग की सैर करो, फूलों की सुगन्ध लो, ठंडी वायु में भ्रमण करो, वृक्षों के कोमल पल्लवों का नृत्य देखो तो पता लगे कि प्रभात-समय जागना बुद्धि और अन्तःकरण को तरोताजा करना है, और विस्तर पर पड़े रहना, उन्हें वासी कर देना है। निकम्मे बैठे हुए चिंतन करते रहना, अथवाबिना काम किये शुद्ध विचार का दावा करना, मानों सोते-सोते खर्राटे मारना है। जब तक जीवन के अरण्य में पादड़ी, मौलवी, पंडित और साधु-संन्यासी हल, कुदाल और खुरपा लेकर मजदूरी न करेंगे तब तक उनका आलस्य जाने का नहीं, तब तक उनका मन और, उनकी बुद्धि, अनन्त काल बीत जाने तक मलिन मानसिक जुआ खेलती ही रहेगी। उनका चिन्तन वासी; उनका व्यान वासी, उनकी पुस्तके वासी, उनके खेल वासी, उनका विश्वास वासी और उनका खुदा भी वासी हो गया है। इसमे सन्देह नहीं कि इस साल के गुलाब के फूल भी वैसे ही हैं जैसे पिछले साल के थे, परन्तु इस . साल वाले ताजे हैं । इनकी लाली नई है, इनकी सुगन्ध भी इन्हीं की अपनी है । जीवन के नियम नहीं पलटते; वे सदा एक ही से रहते हैं, परन्तु मजदूरी करने से मनुष्य को एक नया और ताजा खुदा नजर आने लगता है। ___गेलए वस्त्रों की पूजा क्यों करते हो ? गिरजे की घंटी क्यों सुनते हो। रविवार क्यों मनाते हो ? पांच वक्त की नमाज क्यों पढ़ते हो ? त्रिकाल संध्या क्यों करते हो? मजदूर के अनाथ नयन, अनाथ आत्मा ओर अनाश्रित जीवन की बोली सीखो। फिर देखोगे कि तुम्हारा यही साधारण जीवन ईश्वरीय हो गया। ___मजदूरी तो मनुष्य के समष्टिःत्प का व्यष्टि-रूप परिणाम है, अात्मा रूपं धातु के गढ़े हुए सिक्के का नकदी वयाना है, जो मनुष्यों की प्रात्मा को खरीदने के वास्ते दिया जाता है। सच्ची मित्रता ही तो सेवा है । उस मनुष्यों के हृदय पर सच्चा राज्य हो सकता है । जाति-पॉति, रूप-रंग और नाम-वाम तथा बाप-दादे का नाम पछे बिना ही अपने आपको किसी के | हवाले कर देना प्रेम-धर्म का तत्व है। जिस समय में इस तरह के प्रेम-धर्म !
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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