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________________ [हिन्दी-गद्य-निर्माण मजदूरी और कला आदमियों की तिजारत करना मूखों का काम है। सोने ओर लोहे । के बदले मनुष्य को बेचना मना है। आजकल भाफ की कलों का दाम तो हजारों रुपया है, परन्तु मनुष्य कौड़ी के सौ-सौ विकते हैं। सोने और चांदी की प्राप्ति से जीवन का आनन्द नहीं मिल सकता। सच्चा श्रानन्द तो मुझे मेरे काम से मिलती है मुझे अपना काम मिल जाय तो फिर स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा नहीं, मनुष्य पूजा ही सच्ची ईश्वर-पूजा है । मंदिर और गिरजे में क्या ' रखा है । ईट, पत्थर, चूना कुछ ही कहो-आज से हम अपने ईश्वर की तलाश मंदिर, मसजिद, गिरजा और पोथी में न करेंगे । अब तो यही इरादा है कि मनुष्य की अनमोल अात्मा में ईश्वर के दर्शन करेंगे । यही आर्ट हैयही धर्म है। मनुष्य के साथ ही से तो ईश्वर के दर्शन करानेवाले निकलते है। मनुष्य और मनुष्य की मजदूरी का तिरस्कार करना नास्तिकता है ? विना काम, बिना मजदूरी, विना हाथ के कला-कौशल के विचार और चिन्तन किस काम के ! सभी देशों के इतिहासों से सिद्ध है कि निकम्मे पादड़ियों, मौलवियों पंडितों और साधुओं का, दान के अन्न पर पला हुआ, ईश्वर चितन अन्त में पाप, आलस्य और भ्रष्टाचार में परिवतित हो जाता है। जिन देशों में हाय और मुँह पर मजदूरी की धूल नही पड़ने पाती वे धर्म और कला-कौशल मे कभी उन्नति नहीं कर सकते । पद्मासन निकम्मे सिद्ध हो चुके हैं । यही आसन ईश्वर प्राप्ति करा सकते हैं जिनसे जोतने, बोने कटाने, और मजदूरी का काम लिया जाता है । लकड़ी, ईट और पत्थर की मूर्तिमान करने वाले लुहार, बढ़ई, मेमार तथा किसान आदि वैसे ही पुरुष हैं जैसे कि कवि, महात्मा और योगी श्रादि । उत्तम से उत्तम और नीच से नीच काम, सब के सव प्रेम- शरीर के अंग हैं। निकम्मे रहकर मनुष्यों की चितन-शक्ति थक गई है । विस्तरों और श्रासनों पर सोते और बैठे मन के घोड़े हार गये हैं । सारा जीवन निचुड़ चुका है। स्वप्न पुराने हो चुके है । आजकल की कविता में नयापन नहीं । उसमें
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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