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________________ . ( १३' ) ही सजीवता और सौन्दर्य लाता है। स्वरपात मे ही प्रभावोत्पादक संगीत - रहता है । स्वाभाविक स्वरपात के साथ हृदय की बात जब हम हृदय से उठाते हैं, तब वह पढ़ने या सुनने वाले के हृदय में जाकर सीधी समा जाती है । हमारे शन्दों और हमारे वाक्यों में हमारी वाणी का स्वर कहाँ कैसा जाकर गिरता है-वह वैसा ही है या नहीं कि जैसा हम दो अभिन्न-हृदय मित्र, एकान्त में बैठकर, खुले हृदय से, वार्तालाप-करते हैं। उस समय कोई सकोच हमारे सामने नहीं रहता। संगीत की स्वाभाविक सुन्दर स्वर लहरियां हमारे सम्भाषण मे लहराती रहती हैं । इसी प्रकार का तारतम्य हमारी लेखनी में भी होना चाहिये । लेखनी का यह संगीत कोमल भी होता है; और कठोर भी। जब हम कोमल भावनाओं का चित्रण करते हैं, तब यह स्वरपात का संगीत कोमल और कर्ण-मधुर होता है, और जब हम किसी सार्वजनीन अन्याय के प्रति कठोर श्रावेग मे श्राकर लेखनी चलाते हैं, तब हमारा वही स्वर अंन्यायियों और अत्याचरियों के हृदय को विदीर्ण करता हुआ जाता है। हम अपनी लेखनी के स्वर से उपकारियों का हृदय शीतल कर सकते हैं, और अपकारियों के दुष्कृत का विनाश भी कर सकते हैं। लेखनी के संगीत में ऐसा ही प्रभाव है । स्वर के साथ शन्दों की शक्ति का ऐसा ही चमत्कार है। शैली के विषय मे युवक लेखकों के लिए इतना ही परामर्श यहाँ पर पर्याप्त मालूम होता है | इस पुस्तक में हमने अाधुनिक काल के कुछ मुख्य मुख्य लेखकों के ही गद्य लेख संकलित किये हैं । इन लेखकों के अतिरिक्त और भी कई हिन्दी गद्यकार आधुनिक हिन्दी के निर्माता हैं। परन्तु स्थल'संकोच के कारण हम और अधिक निबन्ध देने में असमर्थ हैं । जो लेख यहाँ पर दिये गये हैं, उनमें लेखकों की शैली दिखलाने का हमने प्रधान हेतु रखा है। इसके साथ ही विषय-वैचित्र्य का भी ध्यान रखा गया है। संग्रह साहित्य ___ की परीक्षा के लिए किया गया है, इसलिए साहित्यिकता का भाव सर्वोपरि माना है । भूमिका में प्रत्येक लेखक की हिन्दी-सेवा और उसकी शैली का संक्षेप विवरण दे दिया है। किसी लेखक की शन्द शैली में हमने अपनी ओर
SR No.010761
Book TitleHindi Gadya Nirman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmidhar Vajpai
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2000
Total Pages237
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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