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________________ क्षेत्राधिकार । चौथा भंग होता है। तथा काल गुरु और तप भी गुरु यह 'पांचवां भंग होता है। इनको पूर्ण प्रस्तार संदृष्टि १, १-२०. ३, २, २, यह है ॥ १३५ ।। इति श्रीमंदिगुरुविरचिते प्रायश्चित्तसामुखये कालाधिकारस्तृतीय: ॥३॥ -क्षेत्राधिकार। ... अब क्षेत्र अधिकारका कथन करते हैं - क्षेत्रं नानाविध ज्ञेयं गणेन्द्रेणाटता भुवं । अथवा दशधा क्षेत्र विज्ञेयं हि समासतः॥१३६॥ __ अर्थ-पृथ्वीतल पर विहार करनेवाले प्राचार्यको क्षेत्रले अनेक भेद जानने चाहिये। अथवा संक्षेपसे क्षेत्र दश प्रकारका समझना चाहिये। भावार्थ-क्षेत्र नाम देशका है। कोई देश ' . पासुक-जीवोंके अधिक संचारसे रहित होते हैं, कोई अमासुक-. जीवोंके अधिक संचारसे पूर्ण होते हैं। कहीं संयमी होते हैं, कहीं नहीं होते। कहीं भिना मिलना सुलभ होता है, कहीं दुर्लभ होता है। कहींके लोग भद्रपरिणामी होते हैं, कहोंके रौद्रपरि-णामी होते हैं इत्यादि देशके अनेक भेद हैं अयश संक्षेपतः देशके दश भेद हैं । १३६ ॥
SR No.010760
Book TitlePrayaschitta Samucchaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages219
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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